जीवनी/आत्मकथा >> प्लेटो प्लेटोसुधीर निगम
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पढ़िए महान दार्शनिक प्लेटो की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 12 हजार...
प्लेटो और सुकरात के मध्य इन विभिन्नताओं के बावजूद दोनों एक दूसरे के निकट थे। सुकरात की सत्य की खोज और दर्शन के प्रति समर्पित भावना से प्लेटो विशेष रूप से प्रभावित था। संभवतः सुकरात से ही प्रश्नोत्तर शैली सीखकर प्लेटो ने अपने दार्शनिक सिद्धांतों को संवाद शैली में प्रस्तुत किया। सुकरात के बिना प्लेटो दार्शनिक नहीं होता अथवा वह दूसरा प्लेटो होता। उसी प्रकार यह भी उतना ही सत्य है कि प्लेटो के बिना सुकरात सुकरात नहीं होता अथवा वह सुकरात होता जिसका चित्रण जेनोफोन ने किया था। जेनोफोन का सुकरात न तो दार्शनिक था और न ही इतने दिलचस्प व्यक्तित्व का स्वामी था जैसा कि प्लेटो ने चित्रण किया है।
प्लेटो और सुकरात के बीच किस प्रकार का संबंध था, इस बारे में विद्वान एक मत नहीं है। अपनी अपोलाजी आफ सोक्रेटीज में प्लेटो स्पष्ट कहता है कि वह एक निष्ठावान युवा शिष्य था। इसी ग्रंथ में सुकरात प्लेटो का नाम लेकर कहता है कि वह उन युवाओं में से एक था और इतने निकट था कि उसे वह आसानी से भ्रष्ट कर सकता था यदि वास्तव में वह युवाओं को भ्रष्ट करने का अपराधी होता। क्रीटो, अपोलोदोरस और क्रीटोबोलस के साथ प्लेटो का भी नाम आता है जिन्होंने सुकरात की ओर से, मेलोतोस द्वारा प्रस्तावित मृत्यु दंड के विकल्प के रूप में 30 मीना का जुर्माना भरने का प्रस्ताव किया था। फैदो में इसी नाम का पात्र उन लोगों के नाम गिनाता है जो सुकरात के अंतिम दिन कारागार में उपस्थित थे। प्लेटो की अनुपस्थिति का कारण यद्दपि ‘बीमारी’ बताया गया है परंतु, कहा जाता है, सुकरात के प्रति प्रेमाधिक्य के कारण वह अपने प्रिय गुरु को जहर का प्याला पीते और मरते नहीं देख सकता था। इस विषय में प्लेटो ने अपने संवादों में कुछ नहीं कहा है।
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