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जीवनी/आत्मकथा >> प्लेटो

प्लेटो

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10545
आईएसबीएन :9781613016329

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पढ़िए महान दार्शनिक प्लेटो की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 12 हजार...


उसके भारत आने का कयास इस तथ्य पर आधारित है कि उपनिषदों की तरह उसका लगभग समस्त साहित्य संवाद शैली में प्रणीत किया गया है। यह संयोग भी हो सकता है। प्रारंभिक हिब्रू भाषी कालगणना संबंधी कार्यों से विदित होता है कि प्लेटो मिस्र में जेरेमिआह से मिला था और उससे प्रभावित भी हुआ था। हालांकि प्रारंभ में वह उसे अनर्गल लगा था। मिस्र में उसने सभ्यता के विकास को अपनी आंखों से देखा और वहाँ की सभ्यता से वह आश्चर्यचकित हो गया। वहाँ उसे पता चला कि मिस्र की तुलना में एथेंस कितना हीन है। इटली में उसने पाइथागोस के मत का और सिसली में शासन-व्यवस्था का अध्ययन किया।... लेकिन अभी हमें पीछे लौटकर एथेंस में ही रहना होगा।

20 वर्ष की अवस्था में प्लेटो सुकरात के सम्पर्क में आया। सुकरात को भी कदाचित प्लेटो जैसे शिष्य की प्रतीक्षा थी जैसे स्वामी रामकृष्ण परमहंस को विवेकानंद जैसे शिष्य का इंतजार था। प्लेटो गुरु सुकरात से इतना प्रभावित हुआ कि उसने अपना व्यक्तित्व सुकरात के व्यक्तित्व में विलीन कर दिया। अब प्लेटो ने दर्शन को अपना प्रिय विषय बना लिया।

प्लेटो और सुकरात के स्वभाव, व्यक्तित्व, रुचियों और जीवन-शैली में महान अंतर था। सुकरात का संबंध एथेंस की सामान्य जनता के वर्ग से था जबकि प्लेटो अभिजात कुल और समृद्ध परिवार का प्रतिनिधित्व करता था। सभी विवरणों में सुकरात का उल्लेख एक भौंडे, कुरूप, मुंहफट आलोचक तथा उपहार को सहज ढंग से स्वीकार करने वाले व्यक्ति के रूप में मिलता है। ठीक इसके विपरीत उदात्त जीवन-दृष्टि वाले प्लेटो की चर्चा एक सुंदर, शिष्ट, मितभाषी, मित्रप्रिय, चतुर और दूरदर्शी व्यक्ति के रूप में की जाती है। गुरु और शिष्य की तुलना करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि एक वस्तुनिष्ठ सत्य पर पहुंचने की पद्धति विकसित करने का प्रयास कर रहा था तो दूसरा सिद्धांतों को स्थापित करने में संलग्न था। सुकरात ने कुछ नहीं लिखा पर प्लेटो ने प्रभूत व्यवस्थित दार्शनिक साहित्य पश्चिमी विश्व के लिए छोड़ा।

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