जीवनी/आत्मकथा >> प्लेटो प्लेटोसुधीर निगम
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पढ़िए महान दार्शनिक प्लेटो की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 12 हजार...
राजनीति से तोबा
प्लेटो शुरू से ही महत्वाकांक्षी था। उसकी प्रकृति और प्रारंभिक रहन-सहन से कोई भी यह अनुमान लगा सकता था कि राजनीति उसके लिए स्वाभाविक पेशा होगा। ऐसी आशा राजघराने के व्यक्ति से की भी जा सकती थी। किंतु एथेंस की तत्कालीन परिस्थिति ने उसे राजनीति में जाने से रोका। ई.पू. 409 ने 404 तक वह सेना में रहा। इसी बीच पेलोपोनीसोस युद्ध में उसने भाग लिया। ई.पू. 404 में 30 तानाशाहों की अल्पमत सरकार के शासन में वह सम्मिलित रहा। इन तानाशाहों का नेता खारमीदिस उसका चाचा था। दूसरा क्रीतीओस भी उसका संबंधी था। वे दोनों सुकरात के शिष्य थे। लेकिन इस समूह द्वारा हिंसा का प्रश्रय लेने और सुकरात को प्रताड़ित करने के कारण पर वह उनसे अलग हो गया। ई.पू. 403 में जब प्रजातंत्र फिर बहाल हुआ तो प्लेटो ने राजनीति में करियर बनाने की सोची। यही उसका मौलिक लक्ष्य था। किंतु एथेंस की गरिमा फटे बादल की तरह नष्ट हो चुकी थी और उसका यशःसूर्य अस्ताचल की ओर था। स्पार्टा में उन्नति हो रही थी और मकदूनिया विकास के पथ पर था। युद्ध से एथेंस की बची-खुची शक्ति भी समाप्त हो चुकी थी। इस बार एथेंस सुकरात की हत्या के पाप का भागी हो गया। अब प्लेटो राजनीति से पूर्णतया उपराम हो गया था।
ई.पू. 399 में सुकरात को प्राण दंड दिया गया। अपने परम प्रिय गुरु की हत्या से प्लेटो की आत्मा विद्रोह कर उठी। जिस एथेंस ने उसके गुरु की कीमत नहीं पहचानी वहाँ रहना उसने निरर्थक समझा। सुकरात का समर्थन करने के कारण प्लेटो का एथेंस में रहना भी दूभर हो गया। संभावनाओं का संसार तलाशने वह मेगारा चला गया। मेगारा में उसका मित्र और सहपाठी यूक्लिड्स रहता था। वह सुप्रसिद्ध गणितज्ञ था। यहाँ प्लेटो ने मित्र के सहयोग से प्रसिद्ध दार्शनिक पार्मेनाइदिस के सिद्धांतों का अध्ययन किया। उसके बाद बारह वर्षों तक वह कहाँ और कैसे रहा इसका कोई लेखा-जोखा उपलब्ध नहीं है। परंपराओं के अनुसार इस अवधि में प्लेटो ने सिसली, सिरीन, मिस्र, इटली और भारत की यात्रा की। भारत-यात्रा के संबंध में कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है।
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