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जीवनी/आत्मकथा >> प्लेटो

प्लेटो

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10545
आईएसबीएन :9781613016329

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पढ़िए महान दार्शनिक प्लेटो की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 12 हजार...


रिपब्लिक के चौथे भाग में प्लेटो क्रम से चार अपूर्ण समाजों का, राज्य की संरचना और वैयक्तिक चरित्र का विवरण देता है। महाजन मंत्र में शासन वर्ग का चरित्र मुख्यतः योद्धा का होता है। प्लेटो के वर्णन में स्पार्टा उसके दिमाग में रहना है। अल्पमत शासन में धन ही मुख्य निर्णायक तत्व होता है और धनी लोगों का शासन होता है। प्रजातंत्र में राज्य पुराने एथेंस की तरह होता है और राजनीतिक अवसरों की सयानता और व्यक्ति को कुछ भी करने की आजादी होती है। अमीर और गरीब में संघर्ष के कारण प्रजातंत्र अधिनायकवाद में बदल जाता है। इससे अनुशासनहीन समाज अराजक हो जाता है जबकि निजी सेना के निर्माण और उत्पीड़न की वृद्धि के साथ अधिनायक लोकप्रिय हो जाता है।

प्लेटो प्रजातांत्रिक व्यवस्था में बड़ा हुआ था। वह व्यवस्था मिथ्या भौतिक मूल्यों पर आधारित होने के कारण उसे बनावटी लगी। इस व्यवस्था का पतन हुआ और ‘टायरेंट्स’ सुधारक आए तो प्लेटो का लगा कि एथेंस अपने खोए गौरव को प्राप्त कर लेगा। परंतु जनता से दूर होने के कारण उनका पतन हो गया। पुनः प्रजातंत्र स्थापित हुआ। इसके संयम को देखकर प्लेटो को लगा व्यवस्था बदलेगी। परंतु जब निर्दोष सुकरात को मृत्यु-दंड दिया गया तो एथेंस के प्रजातंत्र से उसका मोह भंग हो गया। अब दो ही विकल्प थे-या तो सत्ता सच्चे दार्शनिक के पास जाए या किसी चमत्कार से राजनीतिक ही दार्शनिक बन जाए तो मानवता का उद्वार हो सकता है।

प्लेटो की दृष्टि सार्वभौमिक थी। वह विश्व क्रांति करना चाहता था किंतु मनुष्य के हृदय के भीतर। सुकरात से उसने सीखा था कि आतंरिक सुधार करना कठिन काम है। किंतु एक न्यायपूर्ण समाज के लिए स्वतंत्र और दास, यूनानी एवं विदेशी, स्त्री तथा पुरुष सभी का आंतरिक परिवर्तन प्लेटो ने आवश्यक माना। इसके लिए आवश्यक थी लम्बे समय तक दी जाने वाली शिक्षा की, जो हृदय परिवर्तन कर सके।    

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