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जीवनी/आत्मकथा >> प्लेटो

प्लेटो

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10545
आईएसबीएन :9781613016329

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पढ़िए महान दार्शनिक प्लेटो की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 12 हजार...

धर्म

प्लेटो का मेनो इस प्रश्न से शुरू होता है, ‘‘सुकरात, क्या तुम मुझे यह बतला सकते हो कि क्या धर्म सिखाया जाता है ?’’ सुकरात बताता है कि धर्म सिखाया नहीं जाता अपितु उसका ‘अनुस्मरण किया जाता है।’ अनुस्मरण करने में व्यक्ति द्वारा अपने आत्म को एक जगह केंद्रित करना होता है और आत्मा में वापस लौट आना होता है। ‘अनुस्मरण’ के सिद्धांत से यह ध्वनित होता है कि प्रत्येक व्यक्ति को खोज अपने अंदर करना चाहिए। वह अपना केन्द्र स्वयं है और सत्य स्वयं उसके अंदर विद्यमान है। आवश्यकता इस बात की है कि उसमें उस सत्य को पाने का संकल्प और धैर्य हो। गीता (6/10) के अनुसार ‘‘योगी को चाहिए कि वह एकांत में अकेला बैठकर, अपने आप को वश में रखते हुए, सब इच्छाओं से मुक्त होकर और किसी परिग्रह की कामना न करते हुए अपने मन को (परमात्मा में) एकाग्र करे।’’ गुरु का काम शिक्षा देना नहीं अपितु शिष्य को अपने आप को वश में करने में सहायता देना है। सच्चा उत्तर स्वयं प्रश्नकर्ता के मन में विद्यमान होता है। केवल उससे वह उत्तर दिलवाया जाना होता है जो वह वस्तुरूपात्मक जगत् के प्रति अपने लगाव के कारण उसे खो बैठता है। वस्तुरूपात्मक जगत् के  साथ अपने आपको एक समझने के कारण हम अपनी वास्तविक प्रकृति से बाहर निकल जाते हैं या उसके प्रति विजतीय बन जाते हैं।

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