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जीवनी/आत्मकथा >> प्लेटो

प्लेटो

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10545
आईएसबीएन :9781613016329

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पढ़िए महान दार्शनिक प्लेटो की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 12 हजार...

प्लेटो की आत्मा

प्लेटो की दृष्टि में आत्मा व्यक्ति का सबसे महत्वपूर्ण अंग है क्योंकि उसका संबंध शाष्वत जगत से है, नष्वर जगत से नहीं। उसका जीवन अनंत है। मृत्यु कोई बुराई नहीं, शरीर-कारागार से मुक्ति है जिसके बाद आत्मा उस विचार-संसार में पुनः पहुंच जाती है जिसके साथ पृथ्वी पर जन्म लेने से पहले उसका नाता था। जन्म से थोड़ा पहले वह नदी (वैतरणी) का पानी पी लेती है जिससे वह दूसरे संसार का अधिकांष या संपूर्ण ज्ञान विस्मृत कर बैठती है। यहाँ की वस्तुओं के ज्ञान से उसे अपने किसी समय के संपूर्ण और दोषरहित ज्ञान का हल्का-सा आभास होता है। इस जगत में संपूर्ण प्राप्त ज्ञान अनुस्मरण मात्र है। चेतन जगत् में ऊपर उठने में सफल हो जाने के बाद उसे संपूर्ण रूपों का आभास पुनः होने लगता है। मानव का उद्देश्य ‘परमात्मा के साथ यथासंभव पूर्ण ऐक्य-स्थापना होनी चाहिए। मृत्यु के लिए तैयारी का नाम ‘दर्षन’ है क्योंकि उसी के कारण आत्मा इस योग्य हो पाती है कि एक बार फिर वह मानव शरीर की सीमाओं में वापस आने का दंड पाने के बजाय स्थाई रूप से विचारों के संसार में ठहरी रहे। यदि आत्मा एक शुद्धता की दषा में प्रस्थान करती है और अपने साथ उस किसी अषुद्धता को नहीं ले जाती जो उसके साथ जीवन काल से चिपटी रही थी और जिसमें उसने कभी स्वेच्छा से भाग नहीं लिया था, अपितु, सदा बचने का यत्न किया था, वह अपने आपको अपने आप में समेटकर और षरीर से पृथक होने का अपना उद्देश्य और इच्छा बनाकर... दिव्य, अमर और ज्ञान के उस अदृष्य लोक की ओर प्रस्थान करती है। प्लाटिनस भी कहता है कि जो आत्माएं शुद्ध हो चुकी हैं और शरीर पर जिनका तनिक भी मोह नहीं है वे फिर से शरीर धारण नहीं करेंगी। पूर्णरूप से अनासक्त होने पर वे चेतन वास्तविकता में विलीन हो जाएंगी।’’

मनुष्य को तब तक धैर्यपूर्वक जुटे रहना चाहिए जब तक उसे दो में से एक वस्तु प्राप्त न हो जाए-या तो वह वस्तुओं के विषय में सत्य को स्वयं खोज ले या उस सत्य को किसी अन्य व्यक्ति से जान ले। गीता (4/24) कहती है-’’उस ज्ञान (सत्य) को सविनय, आदर द्वारा, प्रश्नोत्तर द्वारा और सेवा द्वारा प्राप्त करो। तत्वदर्शी ज्ञानी लोग तुम्हें उस ज्ञान (सत्य) का उपदेश करेंगें।’’ यदि यह असंभव हो तो उसे सर्वोत्तम या अकाट्य मानवीय सिद्धांतों को पकड़ लेना चाहिए और जीवन-सागर पार करने के लिए उन्हीं को अपना बेड़ा बना लेना चाहिए।

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