जीवनी/आत्मकथा >> प्लेटो प्लेटोसुधीर निगम
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पढ़िए महान दार्शनिक प्लेटो की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 12 हजार...
नैतिक विचार
प्लेटो के नैतिक विचार फिलैबस और लाज नामक संवाद ग्रंथों में मिलते हैं। वह पूर्णता को नैतिक शुभ की प्रकृति मानता है और मानव-जीवन के सभी शुभों को पांच श्रेणियों में बांटता है। इस श्रेणी विभाजन में उसने संतुलित, मध्यम और उपयुक्त को पहला; सुघड़, सुंदर और पूर्ण को दूसरा; बुद्धि और बुद्धिमत्ता को तीसरा; विज्ञान, कला और उचित सम्मति को चौथा और सुख को पांचवा स्थान दिया है। इन शुभों की प्रकृति से ज्ञात होता है कि प्लेटो बौद्धिक संतुलन को मानव जीवन का मुख्य ध्येय या परम शुभ मानता था। इसीलिए उसने संतुलन को प्रथम स्थान दिया। ये सभी शुभ परस्पर असंबद्ध नहीं हैं बल्कि एक ही श्रृंखला की विविध कड़ियां हैं।
संतुलित मन से योग्यायोग्य का विचार कर मध्यम मार्ग का अनुसरण करने वाले व्यक्ति के कार्य सुघड़, सुंदर और पूर्ण हो सकते हैं। ऐसे ही कार्य करने वाला व्यक्ति धीरे-धीरे बुद्धि का विकास कर बुद्धिमान बनता है। किंतु इस प्रकार के कार्य करने के लिए विद्वानों के अध्ययन की, कलाओं के अभ्यास की और अनुभवी लोगों की सम्मतियों से शिक्षा प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। यदि किसी ने निरंतर अभ्यास कर इस प्रकार के कर्म करने का स्वभाव बना लिया तो निश्चय ही उसका जीवन सुखमय होगा। यही प्लेटो की नैतिक शिक्षा का वास्तविक अर्थ है।
लाज की पहली पुस्तक में प्लेटो एक बार फिर नैतिक प्रसंग उठाता है। यहाँ वह बुद्धिमान, मिताचरण, न्याय और साहस को नैतिकता के गुण बताता है। इन्हें दैवी गुण ठहराते हुए वह राज्य से अपेक्षा करता है और राज्य को ऐसी व्यवस्था करने की सम्मति देता है जिससे नागरिकों में ये गुण उत्पन्न हो सकें। इन गुणों के उसने चार मानवीय शुभ बताए हैं-स्वास्थ्य, सौंदर्य, शक्ति तथा अर्थ। ये व्यवस्थित जीवन के उपकारक हैं, इसलिए इन्हें अर्जित करना सबके लिए अपेक्षित है।
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