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जीवनी/आत्मकथा >> प्लेटो

प्लेटो

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10545
आईएसबीएन :9781613016329

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पढ़िए महान दार्शनिक प्लेटो की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 12 हजार...

ज्ञान सिद्धांत

थिएतितोस नामक संवाद से प्लेटो की ज्ञान संबंधी अवधारणा ज्ञात होती है। ‘ज्ञान एक गुण है’ सुकरात के इस सिद्धांत को स्वीकार करते समय प्लेटो ज्ञान को केवल चेतन जगत् का ज्ञान नहीं वरन् इसके परे के अत्यंत श्रेष्ठ जगत् और यर्थाथ का-जिन्हें विचार कहा जाता है और चेतन जगत जिसका एक अस्पष्ट प्रतिबिंब मात्र है-ज्ञान समझते हैं। हमारे विचारों का योग और सर्वोत्कृष्ट विचार है-शुभ विचार अर्थात् ईश्वर। ईश्वर को अनुभूति या बुद्धि के सहारे नहीं बल्कि आध्यात्मिक पुनर्जन्म या ईश्वर में विलीन हो जाने के प्रयत्न से पहचाना जा सकता है। गीता के अनुसार सर्वोत्तम विद्या अध्यात्म विद्या है (अध्यात्मविद्या विद्यानां ...) क्योंकि यह विद्या भगवान के परम आनंद को पाने का मार्ग है। यह बौद्धिक अभ्यास या सामाजिक अभियान नहीं है। यह उद्धार करने वाले ज्ञान का मार्ग है।

थिएतितोस नामक संवाद में ऐन्द्रियक ज्ञान और आत्मिक ज्ञान में भेद किया गया है किंतु ऐन्द्रियक ज्ञान को भ्रम और असत्य नहीं बतलाया गया है। वह केवल अपूर्ण है परंतु शिक्षा और अनुभव से विकसित होता है और पर्यालोचन और तुलना की शक्तियां उसे पूर्ण बना देती हैं। पूर्ण होने पर वह सामान्य अथवा सार्वभौम होता है। प्लेटो के इस ज्ञान संबंधी दर्शन में मनोवैज्ञानिक तथ्य भी हैं। सीखने, धारण करने और प्रत्याह्नान को ज्ञान का अवयव बताकर स्मृति के अध्ययन के संकेत दिए हैं। संवेदन, प्रत्यक्ष और निर्णय तक ज्ञान का विकास बताकर सामान्य ज्ञानात्मक प्रक्रिया का संक्षिप्त अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। पर्यालोचन और तुलना को ज्ञान का माध्यम कहकर चिंतन की प्रक्रिया के अध्ययन के सुझाव दिए गए हैं। शिक्षा और अनुभव को ज्ञान का आधार बताकर सीखने की क्रिया के अध्ययन की पीठिका बना दी गई है। कमी केवल उचित विश्लेषण की है किंतु इस विश्लेषण के लिए शताब्दियों तक अध्ययन और चिंतन की आवश्यकता थी। प्लेटो पहला व्यक्ति था जिसने भावी अध्ययन के लिए उपयोगी संकेत छोड़े थे।

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