जीवनी/आत्मकथा >> प्लेटो प्लेटोसुधीर निगम
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पढ़िए महान दार्शनिक प्लेटो की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 12 हजार...
भौतिक सिद्धांत
तिमैओस नामक संवाद ग्रंथ में किसी प्रकार का विवाद नहीं है। इसमें तिमैओस कहता है और अन्य पात्र सुनते हैं। सृष्टि रचना के संबंध मं प्लेटो परंपरानुमोदित धार्मिक धारणाओं को ही प्रश्रय देना चाहता है। वह कहता है कि ईश्वर ने स्थूल और सूक्ष्म तत्वों के संयोग से स्वर्ग का निर्माण किया जो नित्य है, शाश्वत है, पूर्ण है। फिर उसी ने इसका अपूर्ण रूप प्रस्तुत किया जो हमारा जगत् है। ईसाई विचारकों के मतानुसार परमात्मा किसी पहले से विद्यमान भौतिक तत्व द्वारा सृष्टि का सृजन नहीं करता अपितु वह शून्य में से उसे रच डालता है। भगवत्गीता (7/1) में कहा गया है कि भौतिक तत्व और उसका बाह्य रूप दोनों ब्रह्म का अंश हैं। परमात्मा स्वयं ही बीज रूपी विचारों को स्थूल जगत् के रूपों में अवतरित करता है। इन दोनों में सत्य और सत्य के प्रतिरूप का संबंध होने से नित्य और अनित्य का, सत् और असत् का द्वन्द्व वास्तविक नहीं रह जाता। व्यवहार को परमार्थ का प्रतिरूप बताकर प्लेटो उस खाई को भर देना चाहता है जो हेराक्लातस और पार्मेनाइदीस ने परिणाम और सत्ता की समस्याएं उठाकर पैदा की थी। उसने तिमैओस से कहलाया भी है कि सत्य संसार का ज्ञान बुद्धि से होता है और असत्य का इंद्रियों से, किंतु असत्य केवल भ्रम नहीं है क्योंकि वह सत्य की छाया है। सचमुच प्लेटो का भौतिक दर्शन उसके अध्यात्मवाद की अस्पष्ट छाया है।
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