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जीवनी/आत्मकथा >> प्लेटो

प्लेटो

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10545
आईएसबीएन :9781613016329

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पढ़िए महान दार्शनिक प्लेटो की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 12 हजार...


अनेक संवाद कला के प्रश्नों को हल करते है। सुकरात का कहना है कि कविता म्यूज (नामक देवियो) द्वारा प्रेरित होने के कारण तर्कशील नहीं होती। वह इसे व अन्य विधाओं को पागलपन बताता है और रिपब्लिक में कहता है कि होमर के काव्य और प्रहसन को गैरकानूनी करार दिया जाए। लेकिन इओन में वह रिपब्लिक की तरह होमर के अननुमोदन का कोई संकेत नहीं देता बल्कि कहता है कि ‘इलियड’ को प्राचीन यूनान में धर्मग्रंथ की तरह माना जाता था। वह कहता था, यह देव-प्रेरित साहित्य है और इससे नैतिक मार्ग-दर्शन मिल सकता है यदि इसकी उचित व्याख्या की जाए। अरस्तू के षिष्य सिकंदर को होमर की ‘इलियड’ इतनी पसंद थी कि एक प्रति वह हमेषा अपने साथ रखता था। अरस्तू के गुरु प्लेटो को ‘इलियड’ से चिढ़ थी। शायद वह मानवीय संवेगों और इतनी मार्मिक अभिव्यक्ति से चिढ़ता था। उसकी दृष्टि में होमर का काव्य चरित्र के ठोसपन और दृढ़ता को विगलित करने का प्रयास था। कविता म्यूज (नामक देवियों) से प्रेरित होने के कारण तर्कषील नहीं होती। इसी कारण प्लेटो ‘इलियड’ से चिढ़ता था। होमर का महत्व स्वीकार करते हुए भी उसका अनुसरण करने वलाी चारण-परंपरा पर उसका आक्रोष रिपब्लिक में व्यक्त हुआ है। वह यहाँ तक कहता था कि होमर के काव्य और प्रहसन को गैर कानूनी करार दिया जाए। सुकरात और तार्किकों के समूह ने राजनीति और कला, परितोष और पीड़ा, वाग्मित और भावुक काव्यपाठ, मानवीय प्रकृति और कामुकता, प्रेम और प्रज्ञा, धर्म और विज्ञान, न्याय और भेषज, सदाचार और दुराचार, अपराध और दंड पर कुछ न कुछ कहा है।

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