जीवनी/आत्मकथा >> प्लेटो प्लेटोसुधीर निगम
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पढ़िए महान दार्शनिक प्लेटो की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 12 हजार...
पिता-पुत्र के संबंधों के बारे में बात करते हुए प्लेटो बहुधा एक प्रश्न उठाता था कि पिता के इस सोच का कि उसका पुत्र कैसा हो पुत्र से कुछ लेना-देना नहीं है। प्राचीन एथेंस में किसी लड़के की सामाजिक पहचान उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि से जुड़ी होती थी। सुकरात अच्छे परिवार का नहीं था पर स्वयं को वह अपनी मां का बेटा कहता था जो पेशे से दाई थी। देववादी सुकरात ऐसे लोगों का उपहास करता था जो अपने पुत्रों के शिक्षकों और प्रशिक्षकों पर शुल्क के रूप में असीमित धन खर्च करते थे। वह बार-बार इस विचार को सामने रखता था कि अच्छा चरित्र देवताओं की देन होता है। क्रीटो की इस बात का सुकरात पर कोई असर नहीं पड़ता था कि अनाथ बच्चे अवसर की दया पर निर्भर रहते हैं। थिएतितोस में हम सुकरात को एक ऐसे युवा को अपना शिष्य बनाते देखते हैं जिसने अपनी विरासत को फिजूलखर्ची में उड़ा डाला है। सुकरात पिता-पुत्र के संबंधों की तुलना एक बुजुर्ग और प्रेमी लड़के से दो बार करता है। फैदो में सुकरात अपने शिष्यों के प्रति अपने सगे पुत्रों की अपेक्षा अधिक चिंता व्यक्त करता है क्योंकि उसके न रहने पर वे शिष्य स्वयं को ‘पितृहीन’ समझेंगें।
कई संवादों में सुकरात कहता है कि ज्ञान शिक्षा, अवलोकन तथा अध्ययन का विषय न होकर अनुस्मरण की चीज है। वह तिरस्कार किए जाने के मूल्य पर भी अपने विचार पर अडिग रहता है। वह विस्मृति की शिकायत करता है। सुकरात अक्सर इस बहस को हवा देता है कि ज्ञान इंद्रियातीत है क्योंकि वह दैवीय अंतर्दृष्टि से प्राप्त होता है। मध्यक्रम के कई संवादों जैसे फैदो, रिपब्लिक, फैदरोस में प्लेटो आत्मा की अमरता की बात करता है और कई संवाद मृत्यूपरांत जीवन की कल्पना में लम्बे भाषण के साथ समाप्त होते हैं। एकाधिक संवाद ज्ञान और अभिमत, अनुभूति और वास्तविकता, प्रकृति तथा सदाचार व शरीर तथा आत्मा का अंतर दर्शाते हैं।
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