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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
परिणाम की परवाह नहीं
लिफाफे में जे.पी. का 30 पृष्ठ का पत्र था जिसमें उन्होंने अपने साथियों का आह्वान किया था कि वे हिंसक तरीके से अंग्रेज सरकार का मुकाबला करें। पत्र में महात्मा गांधी के सत्याग्रह को निरर्थक तक बताया गया। देवली कैंप के अधीक्षक ले. कर्नल क्रिस्टोफर के सम्मुख जे.पी. की पेशी हुई। उसने जे.पी. को डांटा और आदेश दिया कि कुछ महीने तक उन्हें किसी से न तो मिलने दिया जाए और न ही उनकी चिट्ठियां बाहर भेजी जाएं। उसने कहा कि यदि वे अपनी हरकत न दुहराने का वचन दें तो उन्हें कोई सजा नहीं दी जाएगी। इस पर जे.पी. ने कहा, ´´मैं एक पेशेवर कानून तोड़ने वाला व्यक्ति हूं। इसी कारण मैं जेल में हूं। जेल के बाहर मैं कानूनों को तोड़ता रहा हूं और जब कभी मौका आएगा मैं उन कानूनों को दुबारा तोड़ने में हिचकिचाऊंगा नहीं। मैं आपके कानून का सम्मान नहीं करता हूं। इसके परिणाम के लिए मैं तैयार हूं।´´ सरकार ने जे.पी. के पत्र के कुछ हिस्सों को अखबारों में छपवा दिया और बापू को चुनौती दी कि यदि उनकी अहिंसा में अडिग आस्था है तो वे इस प्रत्र के लिए जय प्रकाश की भर्त्सना करें।
पत्र की प्रामाणिकता
बापू का बयान ´हिंदू´ अखबार ने 23 अक्तूबर, 1941 को प्रकाशित किया। इस अखबार ने अंग्रेज सरकार के कहने पर जे.पी. का पत्र इस आधार पर छापने से मना कर दिया था कि एक तो उस पत्र की प्रामाणिकता संदिग्ध है, दूसरे यह ज्ञात नहीं है कि वह पत्र किन परिस्थितियों में लिखा गया था। बापू ने अपने बयान में कहा, ´´जय प्रकाश नारायण के विरुद्ध लगाये गये आरोप की सत्यता यदि मान ली जाए तो उनके द्वारा बताये गये तरीके कांग्रेस की सत्य और अहिंसा की नीति के विपरीत हैं और उनकी कठोरतम आलोचना होनी चाहिए लेकिन सरकार किस मुंह से उनकी निंदा करती है? यह साफ है कि सभी राष्ट्रवादी शक्तियों ने चाहे वे किसी भी नाम से जानी जाएं, सरकार के खिलाफ जंग छेड़ दी है और युद्ध के स्वीकृत नियमों के अनुसार जयप्रकाश नारायण द्वारा अपनाया गया तरीका बिल्कुल ठीक है। उन्होंने सात साल तक अमेरिका में शिक्षा पाई है और उन्होंने इस बात का अध्ययन किया है कि पश्चिम के देशों ने आजादी की अपनी लड़ाई किस तरह लड़ी है? छल करना, ऐसे तरीकों का इस्तेमाल करना और यहां तक कि हत्या का षडयंत्र करना सम्मानजनक है और ऐसा करने वालों को राष्ट्रीय नायक बना दिया जाता है। क्या क्लाइव और वारेन हेस्टिंग्स ब्रिटिश नायक नहीं हैं? अगर जय प्रकाश नारायण ब्रिटिश कूटनीतिक सेवा में होते और गुप्त कूटनीति से उन्होंने कोई महत्वपूर्ण काम पूरा किया होता तो मान-सम्मान से उनका अभिनंदन किया गया होता।´´
जे.पी. की प्रशंसा हुई
सरकार का मुंह बंद हो गया। पटना के ´सर्चलाइट´ को छोड़कर लगभग सभी समाचार-पत्रों ने जे.पी. की प्रशंसा में संपादकीय लिखे पर ´सर्चलाइट´ के संपादक मुरली बाबू ने जे.पी. की आलोचना की। इस पर गांधीजी ने राजेंद्र बाबू को फोन किया और उन्होंने मुरली बाबू से बात की। दूसरे ही दिन मुरली बाबू ने ´सर्वचाइट´ में जे.पी. की तारीफ के पुल बांध दिये।
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