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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781613016374

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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख

जब बापू ने हिंसा की वकालत की

जेल से रिहा होने के बाद लोकनायक जयप्रकाश ने 1940 के अंत में पूरे देश की यात्रा प्रारंभ की। इसी दौरान उन्होंने बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात, कोलकाता और मुंबई में गुप्त संस्थाएं स्थापित कीं। अंग्रेज सरकार तो पीछे लगी ही थी। उन्हें मुंबई में फिर गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर कोई मुकदमा नहीं चलाया गया और 23 अप्रैल, 1941 को उन्हें राजस्थान के देवली कैंप में भेज दिया गया। यहां राजनीतिक पाटियों के 104 लोग बंदी थे।

पत्र की वापसी

छह महीने तक कैंप में रहकर जे.पी. बेचैन हो उठे क्योंकि वे बाहर के अपने साथियों से संपर्क नहीं कर पा रहे थे। पत्र बाहर पहुंचाने के लिए उन्होंने जेल के एक कनिष्ठ अधिकारी को पटा लिया। उससे कहा गया कि बाहर प्रतीक्षा कर रहीं उनकी पत्नी को वह पत्र दे दे परंतु सी.आई.डी. की चौकस निगरानी के कारण वह पत्र प्रभावती को नहीं दिया जा सका और जे.पी. को वापस मिल गया।

जे.पी. ने तार भेजकर प्रभावती को फिर मिलने बुलाया। कुछ ही दिन पहले वे जे.पी. से मिल चुकीं थीं अतः समझ नहीं पाईं कि उन्हें इतनी जल्दी फिर क्यों बुलाया है! फिर भी वे मिलने चली गईं।

जे.पी. का लिफाफा

प्रभावती के आने पर जे.पी. कुछ देर इधर-उधर की बातें करते रहे फिर उन्हें एक कागज दिया और कहा कि उसमें उनके पैर की नाप है और उसी नाप की एक जोड़ी चप्पल भिजवा दें। वहां खड़े पुलिस अधिकारी को भी वह कागज दिखला दिया कि उसमें कोई भी आपत्तिजनक चीज नहीं है। उसके बाद जे.पी. ने मेज के नीचे से एक लिफाफा प्रभावती की ओर बढ़ा दिया। प्रभावती गांधीवादी विचारों की थीं। अतः इस प्रकार चोरी से वह लिफाफा लेने में हिचकीं लेकिन जे.पी. ने लिफाफा उन्हें पकड़ा दिया। सी.आई.डी. अफसर बनर्जी प्रभावती की झिझक से ताड़ गया कि मामला कुछ गंभीर है। उसने लिफाफा देख लिया और उस पर झपटा लेकिन सफल नहीं हो पाया। जे.पी. भी झपटे कि लिफाफा फाड़ दें पर बनर्जी बीच में आ गया। दोनों में झड़प हो गई। संतरी वहां आ गये और वह लिफाफा छीन लिया गया।

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