नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
मालवीय जी निज़ाम के महल के पास चहल-पहल से भरे बाज़ार में पहुंचे। एक दुकान के सामने बने चबूतरे पर खड़े हो गए। निज़ाम का जूता जिस हाथ में पकड़ रखा था उसे ऊंचा कर बोले, ´´भाइयो, यह जूता निज़ाम साहब का है जो उन्होंने मेहरबानी करके मुझे दिया है। अगर कोई खरीदना चाहे तो बोली लगाए।´´
लोग इकट्ठे होने लगे और भीड़ बढ़ती गई। कुछ देर बाद एक से बढ़कर एक बोली लगने लगी। तभी यह ख़बर निज़ाम के पास पहुंची कि उनका जूता नीलाम हो रहा है। उसने अपने सेवकों से कहा, ´´बोली कितनी भी ज्यादा क्यों न लगानी पड़े मुझे वह जूता वापस चाहिए।´´
सेवक दौड़े आए और लगातार बोली बढ़ाते रहे। मालवीय जी भी यही चाहते थे। अंततः निज़ाम का जूता उसे ही बेचकर उन्होंने आशा से अधिक रकम प्राप्त की और काशी लौट आए।
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