नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
जूते के बल पर चंदा लिया
इराक यात्रा के दौरान तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बुश पर, उनकी वैश्विक नीतियों से असंतुष्ट किसी व्यक्ति द्वारा जूता फेंका गया। देखा-देखी केन्द्रीय मंत्रियों सहित कई विशिष्ट मंत्रियों पर अपने देश में भी जूते फेंके जाने लगे क्योंकि अच्छी हो या बुरी नकल करने की हमारी पुरानी आदत है। वैसे जूता फेंकने की बात कोई नई नहीं है। इस संबंध में एक पुराना किस्सा भी मिलता है।
बात उस समय की है जब पंडित मदन मोहन मालवीय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए प्रयास कर रहे थे। इतने बड़े कार्य में भारी धनराशि की आवश्यकता तो होनी ही थी। मालवीय जी पूरे देश में घूम-घूमकर चंदा जमा कर रहे थे। दाता अगर मना भी कर दे तो किसी न किसी विधि से चंदा उगाह ही लेते थे। एक राजा के चंदा देने से मना करने पर उन्होनें ब्राह्मण होने के नाते राजा के राखी बांध दी और दक्षिणा के नाम पर लम्बी रकम प्राप्त कर ली।
इसी सिलसिले में मालवीय जी हैदराबाद पहुंचे और वहां के निज़ाम के पास जाकर चंदे की याचना की। चंदे की बात सुनते ही निज़ाम को गुस्सा चढ़ आया। कंजूस होने के कारण वह किसी को चंदा नहीं देता था। इतना ही नहीं ´चंदे´ के नाम से चिढ़ता था। यह बात सभी जानते थे। उसने नाराज़ होकर कहा, ´´तुमने मुझसे चंदा मांगने की जुर्रत कैसे की! आखिर तुम्हारी हैसियत क्या है! निकलो भागो यहां से।´´ फटकार सुनकर भी मालवीय जी वहां अडिग खड़े रहे। आखिर महामना जो थे। उन्हें लगा कि उनकी सात्विक वेशभूषा को देखकर शायद निज़ाम का दिल पिघल जाए। लेकिन उनका वहां खड़ा रहना निज़ाम को कतई बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने अपने एक पैर से जूता निकाला और फेंक कर मालवीय जी को मारा। मालवीय जी सतर्क थे और उन्होंने, बुश की तरह, जूते का वार बचा लिया। उन्हें लगा अब वहां खड़ा रहना बेकार है अतः वह चुपचाप बाहर निकल आए। मालवीय जी ने प्रक्षिप्त जूता कब उठा लिया यह निज़ाम नहीं देख पाया।
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