नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
कुछ दिनों बाद जातिक्रम से एक खरगोश के जाने की बारी आई। उसका जाने का मन नहीं था पर अन्य जानवरों के जोर देने पर वह तैयार हो गया। भारी मन से वह शेर की मांद की ओर चल दिया। कुछ दिनों तक उसने लोमड़ी की शागिर्दी की थी अतः चलते-चलते वह शेर को मारने का उपाय सोचता रहा। मार्ग में उसे एक कुआं दिखाई दिया। जब उसने उस कुएं पर चढ़कर उसमें झांका तो उसे उसके जल में अपनी परछाई दिखाई पड़ी। परछाईं देखकर उसने अपने मन में सोचा, ´´यह बड़ा अच्छा उपाय रहेगा। मैं भासुरक को गुस्सा दिलाऊंगा। उसे उत्तेजित करके अपने बुद्धिबल से उसको इस कुएं में गिरा दूंगा। फिर वन में मेरी बुद्धि की तूती बोलेगी।´´
तीसरे पहर खरगोश भासुरक के पास पहुंचा। ´लंच´ का समय निकल जाने से भूख के मारे शेर का बुरा हाल था। उसकी आंतें कुलबुला रहीं थीं, गला सूखा जा रहा था। क्रोधावेश में उसने सोचा- ´बस! सवेरा होने दो। कल भोजन के लिए मैं इस वन को जीवविहीन कर दूंगा।´
अभी वह सोच ही रहा था कि खरगोश धीरे-धीरे चलता हुआ वहां पहुंच गया। वह शेर को प्रणाम करके विनीत भाव से उसके सामने खड़ा हो गया। खरगोश को देखते ही क्रोध से आंखें लाल करके भासुरक ने फटकारते हुए उससे पूछा, ´´अबे नीच खरगोश! एक तो तू इतना छोटा है, फिर खाने का समय बीत जाने के बाद आया है। इस अपराध के कारण मैं तुझे तो मारूंगा ही, कल सवेरा होते ही अन्य सभी पशुओं को भी मार डालूंगा।´´
इसके बाद खरगोश ने हाथ जोड़कर कहा, ´´स्वामी! इसमें न मेरा कोई अपराध है, न अन्य सभी पशुओं का। मैं विलम्ब का कारण बताता हूं, सुनिए। जातिक्रम से आज मेरे जैसे अल्पकाय जीव की बारी जानकर जंगल के सभी जानवरों ने मुझे चार खरगोशों के साथ भेजा था। हम लोग आ ही रहे थे कि इसी बीच किसी दूसरे बड़े सिंह ने अपनी मांद से निकलकर मुझसे पूछा, ´´अरे तुम लोग कहां जा रहे हो? अपने देवता का स्मरण कर लो। मैं भूखा हूं।´´
उसकी बात सुनकर हम लोगों ने उत्तर दिया, ´´हम लोग वायदे के अनुसार, अपने स्वामी भासुरक नामक सिंह के पास उसके भोजन के रूप में जा रहे हैं।´´
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