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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781613016374

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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख


तब उसने कहा, ´´क्या यह सच है! यह वन तो मेरा है। वह भासुरक तो चोर है, घुसपैठिया है। यदि वह यहां का राजा है तो जमानत के तौर पर चार खरगोशों को यहां छोड़कर जाओ और उसे फौरन बुलाकर लाओ। हम दोनों में जो अधिक पराक्रमी होगा वही इन पांच खरगोशों को खाएगा।´´

यह सुनकर भासुरक ने कहा, ´´भद्र! यदि ऐसा है तो उस चोर शेर को फौरन मुझे दिखलाओ ताकि पशुओं के लिए संचित क्रोध को उस पर उतारकर मैं स्वस्थ हो जाऊं।´´

यह सुनकर खरगोश बोला, ´´स्वामी! आपका कहना सही है! किंतु उसने दुर्ग का आश्रय लिया हुआ है उसने उससे बाहर निकलकर ही हम लोगों को रोका था। यह तो आप भी जानते और मानते होंगें कि दुर्ग में रहने वाला शत्रु अजेय होता है। इसके अलावा मैंने देखा था, वह पर्यात बलवान है। उसकी सामर्थ्य के बारे में पता लगाए बिना वहां जाना उचित नहीं। किसी ने ठीक ही कहा है कि अपनी शक्ति और शत्रु की शक्ति का पता लगाए बिना जो जल्दी में शत्रु के सामने जाता है, वह अग्नि पर पतंगे के समान नष्ट हो जाता है।´´

भासुरक खीजकर बोला, ´´अरे! तुझे इन सब बातों से क्या मतलब? दुर्ग में होने के बावजूद तू उसे दिखा।´´

खरगोश बोला, ´´यदि ऐसी बात है तो स्वामी चलें।´´

ऐसा कहकर वह आगे-आगे चला। तब उसने आते समय जो कुआं देखा था उसी के पास पहुंचकर भासुरक से कहा, ´´स्वामी, आपको आता देखकर वह चोर शेर अपने दुर्ग में घुस गया है। आइए दिखाता हूं।´´ इसके बाद खरगोश ने वह कुआं दिखला दिया।

भासुरक ने कुएं में झांका तो उसे अपना प्रतिबिंब दिखाई पड़ा। वह खरगोश की कमअक्ली पर धीरे से मुस्कराया और पास खड़े खरगोश की ओर सिर घुमाकर कहा, ´´दूसरे शेर के बारे में तू ठीक कहता था। वह है, पर मेरा हमशक्ल भाई है। तू कहता था कि वह भूखा है, इसलिए तू जा और उसकी भूख मिटा।´´

इसके पूर्व की खरगोश भाग सकता, शेर ने पंजा बढ़ाकर खरगोश को दबोच लिया और कुएं के अथाह जल में फेंक दिया। कुएं से छपाक की आवाज आई। इसके साथ ही शेर शिकार करने के लिए निकल पड़ा।

* *

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