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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
शेर और खरगोश
किसी वन में भासुरक नाम का एक शेर रहता था। बल की अधिकता के कारण और अपना आतंक कायम रखने के लिए वह प्रतिदिन अनेक पशुओं की हत्या करता था लेकिन फिर भी उसे संतोष न होता। घटती पशु संख्या से चिंतित हिरन, सुअर, भैंसे, खरगोश, लोमड़ी आदि सभी पशु मिलकर शेर के पास गए। उन्होंने निवेदन किया, ´´महाराज, आपकी तृप्ति तो एक ही जानवर से हो जाती है तो अन्य जानवरों को मार ड़ालने से आपको भला क्या लाभ मिलता है! अगर आप इसी तरह अंधाधुंध जानवरों को मारते रहे तो एक दिन यह वन जानवरों से शून्य हो जाएगा। उस समय आपको अपने आहार के लिए घास पर निर्भर रहना पड़ेगा। जैसा कि कहा जाता है कि शेर भूखा मर जाएगा पर घास नहीं खाएगा। अतः आप भूखों मर जाएंगे।´´
भासुरक ने कुछ सोचा, पर सोच न पाया। अतः उसने कहा, ´´आप लोग क्या प्रस्ताव लेकर आए हैं, साफ-साफ बोलो!´´
प्रतिनिधि-मंडल के अगुआ सुअर ने कहा, ´´महाराज, हमारा प्रस्ताव है कि कल से घर बैठे ही आपको भोजन के लिए एक पशु मिल जाया करेगा। ऐसा करने से बिना कष्ट उठाए आपकी जीविका भी चलेगी साथ ही हम लोग भी सामूहिक विनाश से बच जाएंगे। इसलिए आप इस राजधर्म का पालन कीजिए। किसी ने ठीक ही कहा- ´जो राजा अपनी शक्ति के अनुसार, रसायन की तरह धीरे-धीरे राज्य का उपभोग करता है वह अत्यधिक पुष्ट हो जाता है।´´
शेर ने सोचा कि यह वन्य पशु एक हो गए हैं और एकता में बड़ा बल बताया जाता है अतः मुझे इनकी बात मान लेनी चाहिए। प्रकटतः उसने कहा, ´´हां, हां, आप लोगों की बात एकदम ठीक है। मुझे मान्य है। किंतु यदि एक पशु रोज नहीं आया तो निश्चय ही मैं तुम सबको खा जाऊंगा।´´
भासुरक का आश्वासन पाकर वे पशु बहुत प्रसन्न हुए। फिर वे सुखी मन से उस वन में निर्भय होकर विचरने लगे। जातिक्रम में उनमें से एक पशु नित्य शेर के पास पहुंचने लगा। शेर बिना किसी परिश्रम के प्रस्तुत शिकार का भोजन करता और आनंद से अपनी मांद के समीप के किसी पेड़ के नीचे पड़े-पड़े पंचतंत्र की कहानियां पढ़ता रहता।
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