नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
उसने पति को टालने के लिए कहा, ´´अजी सुनते हो, बड़के काका आए थे। तुम्हें ´अरजेंट´ याद किया है। देख आओ क्या बात है। तब तक मैं देवर जी से बातें करती हूं।´´
शंखमुख बड़के काका का बहुत सम्मान करता था। परंतु कहानी में उनकी ´एन्ट्री´ अप्रत्याशित थी। पर पत्नी की बात कैसे टाले! मन मारकर उसे जाना पड़ा। जाते-जाते उसने बंदर से क्षमा मांगी और आश्वासन दिया कि लौटने में एक घंटे से अधिक समय किसी दशा में नहीं लगेगा।
शंखमुख के जाते ही बंदर ने, सुदामा की तरह, अपनी दोनों कांख में दबी दो थैलियां निकालकर भाभी के सामने पलट दी। भाभी ने फलों को देखा और बंदर से कहा, ´´देवर जी, ये काले फल यानी जामुन तो आपने हमें खूब भेजे परंतु इस पीले बड़े फल का क्या नाम है। यह तो आपने कभी नहीं भेजा।´´
´´क्या कहती हो भाभी! यह ´आम´ नाम का फल आपके पास कभी नहीं पहुंचा। यह वो फल है भाभी कि स्त्रियां इसे खाएं तो चेहरे पर ऐसा निखार आ जाए कि बिना ´मेकप´ के उम्र 5-10 साल कम लगे। मैं तो आपके लिए दोनों फलों की एक-एक थैली रोज भेजता था।´´
´´पर ये तो केवल जामुन वाली थैली लाते थे। आम की थैली कहीं रास्ते में खुद ही तो नहीं चटकर जाते हों।´´
´´अरे राम-राम कहिए, भाभी। ऐसा हो ही नहीं सकता। मैं तो वहीं नदी किनारे भाई साब को छककर आम खिला देता था।´´
´´फिर...?´´
´´अच्छा भाभी यह बताओ कि आपके घर आने का कोई और भी रास्ता है?´´
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