लोगों की राय

नई पुस्तकें >> लेख-आलेख

लेख-आलेख

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781613016374

Like this Hindi book 0

समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख


´´अच्छा ! तुम उसे अपने घर आमंत्रित करो क्योंकि मैं उसे धन्यवाद देना चाहती हूं। गर्भावस्था की ´एडवांस स्टेज´ होने के कारण मैं तुम्हारे मित्र के पास नहीं जा सकती।´´

शंखमुख को संतोष हुआ कि पत्नी ने बंदर का दिल खाने की इच्छा नहीं व्यक्त की है।

दूसरे दिन शंखमुख जब घर से प्रस्थान करने लगा तो शंखमुखी ने कहा, ´´देखो प्रिये, अपने मित्र को संभाल कर पीठ पर लाना। उसे आश्वस्त कर देना कि मुझे उसका कलेजा नहीं खाना है। मैं तो उसके दर्शन की भूखी हूं। तुम्हारे ऐसा कहने पर वह बीच से लौटने की बात नहीं करेगा।´´

समुद्र किनारे पहुंचकर शंखमुख ने बंदर से बात की और दूर समुद्र में स्थित एक द्वीप पर बने अपने घर चलने का न्यौता दिया। पेड़ों पर चढ़ते-उतरते बंदर भी ऊब चुका था और थोड़ा ´चेंज´ चाहता था। उसने दूसरे दिन चलने का वादा किया।

अगले दिन शंखमुख की पीठ पर बैठे-बैठे बंदर ने कहा, ´´भैया, तुम जितनी तेज चलना चाहते हो चलो क्योंकि मेरा दिल काफी मजबूत है और इस समय मेरे पास भी है।´´

शंखमुख को लगा पंचतंत्र की कहानी उलट-पुलट हो रही है।

घर पहुंचकर बंदर ने शंखमुखी को सादर प्रणाम किया। शंखमुखी ने परोपकार में रत रहने का आशीर्वाद दिया। बंदर को देखकर उसने सोचा मीठे फल खाने वाले का कलेजा ही क्या पूरे शरीर का मांस लजी़ज़ होगा। पंचतंत्रकार अवश्य ही कंजूस प्रवृत्ति का रहा होगा अन्यथा सिर्फ कलेजे की बात न करता। आज जी भर के खाऊंगी। हो सकता है शंखमुख को उसके मित्र के साथ यह धोखा अच्छा न लगे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book