नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
´´नहीं तो। आप जिधर से आए हैं वही रास्ता है।´´
´´फिर भाई साब रोज घर को चलते समय घर से उल्टी दिशा को क्यों जाते थे?´´
´´एकदम विपरीत दिशा या उत्तर-पष्विम की ओर?´´
´´आप इतनी परेशान क्यों हैं?´´
´´दरअसल उत्तर-पश्चिम दिशा में इनकी एक ´चहेती´ रहती है। हो सकता है आम उसे दे देते हों। भैया, तुम अभी हमारे साथ चलो और हमें ठीक से वह दिशा बताओ जिधर ये जाते थे।´´
´´पर भाभी, आप इस हालत में कैसे चल पाएंगी?´´
´´तुम इसकी चिंता छोड़ो, मुझे कुछ नहीं होगा।´´
वे दोनों बाहर निकल पड़े। शंखमुखी की पीठ पर बैठे-बैठे बंदर ने कहा, ´´भाभी, मैं पेड़ पर बैठे-बैठे भाई साहब को जाते हुए देखता था। वहीं बैठकर आपको सही दिशा बतला सकता हूं।´´
शंखमुखी ने बंदर को पेड़ के पास उतार दिया।
बंदर पेड़ पर चढ़कर बोला, ´´भाभी, लगता है आपने पंचतंत्र का आधुनिक संस्करण नहीं देखा है। इस युग में अब कोई ´दिल´ की बात नहीं करता, सब ´बुद्धि´ की बातें करते हैं। जाइए, घर जाइए, आज ´सीज़न´ के पहले आम थे जो मैं आपके लिए ले गया था। कल से आपको रोज भेजूंगा और भाई साहब को भी भरपेट खिलाऊंगा।´´
शंखमुखी ने पानी में अपना सिर पटक दिया।
यह देखकर बंदर ने सोचा कि किसी ने ठीक ही कहा है -
कांटा बुरा करील का औ बदली का घाम,
सौत बुरी है चून की औ साझे का काम।
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