नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
भैंस को कब्जे में करने के लिए या अक्ल के पीछे लेकर फिरने के लिए डंडा की बड़ी बहन, लाठी अस्तित्व में आई। लाठी ने सबसे पहले पशुधन (भैंस) को कब्जे में किया। एक लोक कथा है- एक बूढ़ा आदमी अपनी भैंस लिए पैंठ जा रहा था। उस समय तक लाठी और भैंस का साथ नहीं था अतः बूढ़े के पास लाठी नहीं थी। रास्ता सुनसान था। अचानक पता नहीं कहां से एक लाठीधारी आ गया। उसने बूढ़े पर लाठी तानकर कहा, ´´ऐ बुड्ढे़, यह भैंस मुझे दे दे नहीं तो इस लाठी से तेरा सिर फोड़ दूंगा।´´ बूढ़े ने डर कर अपनी भैंस उसे दे दी। लाठीधारी एक हाथ में लाठी और दूसरे हाथ में भैंस की पगही पकड़े अकड़कर चलने लगा।
बूढ़ा भी उसके पीछे-पीछे चलता चला जा रहा था। काफी दूर जाने के बाद उसने लाठीधारी से कहा, ´´भैया, मैं बूढ़ा आदमी, चलते-चलते थक गया हूँ। अपनी लाठी मुझे दे दो तो उसके सहारे चल लूंगा।´´ लाठीधारी ने अपनी लाठी बूढ़े को दे दी। थोड़ी देर बाद बू़ढ़ा लाठी तानकर गरजा, ´´ला मेरी भैंस इधर दे वरना तेरी खोपड़ी खोल दूंगा।´´ लाठीधारी ने भयाक्रांत होकर भैंस बूढ़े को दे दी। भैंस लेकर बूढ़े ने कहा, ´´अब चलता बन। इसी को कहते हैं, जिसकी लाठी उसकी भैंस।´´
लाठी से पहले जानवर हांके जाते थे। हरेक चरवाहे के पास एक लाठी होती थी जिससे वह अपने रेवड़ के हर प्रकार के जानवर यानी गाय, भैंस, बकरी, भेंड़ हांका करता था। आदमियों के संदर्भ में यह मुहावरा बन गया यानी एक ही लाठी से सबको हांकना। हमारे देश में अंग्रेजी राज तक यह मुहावरा सटीक रहा। सरकार एक ही लाठी से आम सत्याग्रही को हांकती थी और उसी लाठी से लाला लाजपत राय जैसे नेता को भी। लाला जी लाठी की मार से शहीद हो गए। और कोई देश होता तो उस ऐतिहासिक लाठी को सुरक्षित रखता।
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