नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
|
|
समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
एक बार चुनाव के पहले एक पार्टी ने ऐलान किया कि वह सबको रोटी देगी। वह जीत गई और उसने अपनी सरकार बनाई। जनता ने रोटी की गुहार लगाई। सबको रोटी देने की प्रक्रिया में सरकार ने इतिहास का पुनर्लेखन करवा दिया। अकबर से महाराणा प्रताप का ऊंचा दर्जा दर्ज किया और उनके आदर्श सामने रखे। इससे कुछ खुड़पेंची इतिहासकार तो खुश हुए ही सबको रोटी भी मिल गई। लेकिन जनता फिर भी त्राहि-त्राहि करती रही कि रोटी दो। लगता है जनता की अक्ल घास चरने चली गयी है। भई, महाराणा प्रताप का आदर्श आपके सामने प्रस्तुत कर दिया गया है और आप समझ ही नहीं पा रहे हैं कि वे घास की रोटियां खाकर अकबर और उसकी मुगलिया सल्तनत से अंत तक लोहा लेते रहे। घास तो हमारे देश में उपलब्ध है ही क्योंकि सरकार ने जंगल काटने पर रोक लगाई है घास पर नहीं। और घास पर आज तक कोई टैक्स भी नहीं है।
लेकिन वैज्ञानिकों ने अपनी शोधपरक टांग अड़ाते हुए कहा है कि यह तथ्य गलत है कि राणा ने घास की रोटियां खाईं होंगी। इसका कारण यह बताया गया है कि घास में ´सेल्यूलोस´ (कोषरस) नामक एक ऐसा कठोर पदार्थ (जिससे पौधे का ठोस भाग निर्मित होता है) पाया जाता है जिसे इन्सान का पेट हजम नहीं कर सकता। घास खाने वाले स्तनपायी अधिकांश जानवरों के पेट में चार कोठे होते हैं जिनमें से एक में जीवाणु होते हैं, जो घास को इस तरह तोड़ देते हैं, कि वह आसानी से हजम हो जाए। इससे समझा जा सकता है कि महाराणा प्रताप भला घास की रोटियां कैसे खाते होंगे! घास खाकर दिखाने वाले असलम के पेट में या तो चार कोठे होंगे या उनका यह प्रदर्शन प्रचार का हथकंडा रहा होगा।
|