नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
पुराने ज़माने में खेल दिखाने वाले नट बांसों के प्रयोग से अपने कौशल का प्रदर्शन करते थे। अथर्ववेद में बांस पर नृत्य करने वाले नट को ´वंशनर्तिन´ कहा गया है। सभी देशों में पतंगें उड़ाई जाती हैं। बांस की खपची (तीली) के बिना पतंग निर्माण की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। अंतरराष्ट्रीय खेलों में आज भी ´बांस छलांग´ (पोल वाल्ट) प्रतियोगिताएं लोकप्रिय हैं।
मनुष्य जैसे-जैसे सभ्य होता गया उसकी हिंसात्मक प्रवृत्ति बढ़ती गई। लाठी-लठिया के अतिरिक्त उसे अन्य मारक हथियार की जरूरत हुई। दूर तक मार करने के लिए उसने धनुष का आविष्कार किया। धनुष को झुकाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ानी पड़ती थी अतः लचक के कारण इसके लिए बांस का ही प्रयोग किया गया। रथों के युगंधर या ´बम´ बांस के ही बने होते थे। भाला, बल्लम, बरछा, परिघ आदि पर्यायवाची है और सभी बांस से निर्मित होते हैं। भाला या बल्लम का प्रयोग फेंककर किया जाता था। हाथी इसी से परास्त किए जाते थे। महाराणा प्रताप का प्रिय अस्त्र भाला ही था। बल्लम का एक और प्रयोग होता था- इस पर चांदी या सोने का पत्तर चढ़ाकर इसे राजाओं और दूल्हों की सवारी के अगल-बगल लेकर चला जाता था।
हमारी विवशताएं भी कुछ कम नहीं हैं। बांस न फूले तो बांझ कहलाए, अगर फूले तो अकाल के भय का संकेत दे और स्वयं को ही सुखा डाले। पूज्य तो एक ही दशा में होता है- जब वंशलोचन पैदा करे। ये मेरे जीवन के विरोधाभास हैं। और उस स्थिति को क्या कहा जाय जब मनुष्य की अंतिम यात्रा मेरे ऊपर होती है!
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