नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
बांस गहराई और लम्बाई का द्योतन करने के काम भी आया। कुएं, ताल या नदी की गहराई नापने की इकाई बांस थी। नाव खेने का उपकरण तो बांस है ही। जहां पानी की थाह नहीं मिलती वहां कह दिया जाता है कि ´लग्गी´ नहीं लगती है। फिर नाव उस ओर नहीं ले जाई जाती। लम्बे आदमी को बिना नापे बांस कह दिया जाता है। यह उसकी औसत से अधिक लम्बाई का द्योतक होता है।
बांस दूरी नापने के काम भी आता है। किंवदती है कि जब पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गोरी से पराजित हो गए तो गोरी उन्हें तथा राजकवि चंद बरदाई को अपने साथ गजनी ले गया। वहां पृथ्वीराज के शब्द-भेदी बाण चलाने का कौशल देखने के लिए उसने क्रूरतापूर्वक उनकी आंखें फोड़ दीं फिर कहा कि अब निशाना साधें। उन्हें एक धनुष बाण दिया गया। चंदबरदायी पास ही खड़े थे, सुल्तान गद्दी पर बैठा था। सुल्तान से बदला लेने का यह स्वर्णिम अवसर था। उन्होंने सुल्तान की स्थिति बताते हुए यह दोहा पढ़ा- चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहाण। तीर चला और सीधे आतताई सुल्तान के सीने में जा धंसा।
कृष्ण को ´वंशीवट´ यानी बांस-वन (बांस बारी) से बहुत प्यार था। उनकी बांसुरी भी तो बांस की बनी थी। इसी कारण वे वेणुगोपाल, वंशीधर जैसे नामों से भी जाने गए। मेरा नाम भी ´वेणु´ प्रचलित हो गया। मेरे एक छोटे-से टुकड़े के सहारे कृष्ण ने गोपियों को वश में कर लिया। वंशी आज भी संगीत वाद्यों में प्रमुख स्थान रखती है और कलाकारों ने इसके माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है।
भवन-निर्माण में आज भी बांस-बल्ली का प्रयोग होता है। आधुनिकतम फर्नीचर अब बांस के बनने लगे हैं। शौकीन लोगों के यहां बांस का कुर्सी-झूला टंगा मिल जाएगा। लकड़ी के फर्नीचर में आंतरिक जोड़ लगाने के लिए ´गोजा´ या ´गुलझा´ (बांस-कील) का प्रयोग किया जाता है। शादी-व्याह या अन्य अवसरों पर लगने वाले शमियानों को बल्लियों के आधार पर खड़ा किया जाता है।
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