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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781613016374

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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख


घटना 1943 की है। फ्लोरिडा के समुद्र तट पर एक दिन मार्था नामक एक महिला स्नान कर रही थी। जहां वह नहा रही थी, वहां पर तल कुछ ढलवां था। कमर तक जल में पहुंचकर जैसे ही वह डुबकी लगाने के लिए उद्यत हुई, दोनों पैर अचानक फिसल जाने के कारण वह गिर पड़ी। पानी में बह चली और डूबने लगी। कई गोते खाने के बाद फेफड़ों में पानी चले जाने से वह बेहोश हो गई। दुर्भाग्यवश आस-पास कोई नहीं था, फलतः उसे किसी की सहायता नहीं मिल सकी। उसी समय वहां से गुजर रहे एक व्यक्ति ने देखा कि एक मानव शरीर पानी में डूबता-उतराता शनैः-शनैः तट की ओर अग्रसर हो रहा है। उत्सुकतावश उसे देखने और उसकी विलक्षण गति का रहस्य जानने के लिए वह रुक गया। शरीर पूर्ववत् किनारे की ओर बढ़ता चला आ रहा था। वह व्यक्ति तट के अत्यन्त समीप आया, तो देखता क्या है कि एक बड़ी डॉल्फिन मछली उस मानव शरीर को अपनी पीठ पर लादे प्रयत्नपूर्वक समुद्रतट की ओर ला रही है। जब वह किनारे पर बिल्कुल छिछले जल में पहुंच गई, तो डॉल्फिन उस शरीर को वहीं छोड़ कर विशाल जल-राशि में कहीं अदृश्य हो गई। व्यक्ति ने जब उस मानव-शरीर का निरीक्षण किया तो उसमें जीवन के कुछ लक्षण दिखाई पडे़। वह उसे पानी से बाहर लाया और फेफड़ों में घुसे जल को प्रयासपूर्वक निकालने लगा। इस क्रिया से मार्था की चेतना धीरे-धीरे वापस लौट आई। तब उसने अपने डूबने की घटना सुनाई। अजनबी ने उसे डॉल्फिन द्वारा बचा लिये जाने का आंखों देखा विवरण बताया। इसे सुनकर मार्था ने अपने भाग्य को सराहा और घर चली गई।

वह व्यक्ति जीव विज्ञान का मूर्धन्य प्रोफेसर डॉ. डी. एरलैण्डसन था। उनके मन में अब यह जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि डॉलफिन ने संयोगवश मार्था को बचाया अथवा अपनी सहयोगी प्रवृत्ति के कारण उसकी रक्षा की। इसे जानने के लिए उसने एक प्रयोग किया। एक बड़े हौज में एक ऐसी अस्वस्थ मादा डॉल्फिन को रखा, जिसे सांस लेने के लिए जल-सतह के ऊपर तक आने में कठिनाई होती थी। उसकी मदद के लिए उसी में एक स्वस्थ एवं अपरिचित नर डॉल्फिन को छोड़ा गया। हौज में नर को डालते ही उसे मादा की सहायता करते देखा गया। नर मछली बार-बार मादा को ऊपर उठा कर सांस लेने में सहयोग प्रदान कर रही थी। बाद में उसमें एक अन्य मादा डॉल्फिन छोड़ी गई। वह भी इस सेवा कार्य में जुट पड़ी। दोनों ने मिलकर 48 घंटों तक अस्वस्थ मत्स्य की मदद की तब कहीं जाकर वह इस योग्य हो सकी कि स्वयं जल-सतह तक जाकर सांस ले सके।

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