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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781613016374

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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख

मज़ाक

मकान का पता पूछते-पूछते वे अपने खटारा स्कूटर से निहाल चंद के घर पहुंचे। संयोग से निहाल चंद बाहर ही खड़े थे। आगंतुक का परिचय पाकर वे बड़े प्रेम से उन्हें घर के अंदर ले गए।

औपचारिक कुशल-क्षेम पूंछने के बाद निहाल चंद ने कहा, ´´भई हमें तो रिटायर हुए दो साल हो गए, आप बताइए आपका काम कैसा चल रहा है। आप नगर विकास प्राधिकरण में एकाउन्टेंट हैं न।´´

´´जी हां। नौकरी का क्या, ठीक ही चल रही है, मुझे भी दो साल बाद रिटायर होना है।´´

´´अरे दो साल बहुत होते हैं।´´

तब तक चाय नाश्ता आ गया। श्रीमती निहाल चंद भी आकर पति के पास जम गईं ।

पति ने आगंतुक का परिचय दिया, ´´शीला, आप हैं श्री निरंजन दास जी। इन्हीं की बेटी सरिता का फोटो हम लोगों ने पसंद किया है। राजीव को भी पसंद है।´´

शीला ने बात छेड़ी, ´´भाई साहब हमें सरिता का फोटो बहुत अच्छा लगा, किसी दिन देख भी लेंगे। जन्मपत्रियां मिलवा ली हैं पूरे अट्ठाइस गुण मिलते हैं। पंडित जी कह रहे थे कि लड़की बहुत भाग्यवान है। जहां जाएगी लक्ष्मी बरसेगी।´´

निरंजन दास ने सुझाव रखा कि वे लोग किसी दिन लड़की को देख लें।

निहाल चंद ने सिर हिलाते हुए कहा, ´´लड़की तो ´पसंद हुई समझो। पहले ´लेना-देना´ तय हो जाए, फिर बात आगे बढ़े तो ठीक रहेगा।´´

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