नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
कुछ देर शांति व्याप्त रही। उधर से प्रतिक्रिया के अभाव में सोपान जी उठकर चले गए।
अगले दिन सुबह सोपान जी दूध लेने नहीं जा पाए लेकिन दोपहर में पूर्ववत दुकान पर जा पहुंचे। उन्होंने डरते-डरते चोर नज़र से साइन बोर्ड देखा जैसे डर रहे हों कि कुछ अशुभ न घटित हो गया हो। बोर्ड देखते ही उनकी बांछें खिल गईं। चश्मा पोंछकर पुनः लगाया और देखा कि साइन बोर्ड पर अब मात्र एक शब्द ´दूध´ विराजमान था और उसके आगे-पीछे के शब्द अवसरवादी मित्रों की तरह गायब हो चुके थे।
सोपान जी दुकान की तरफ बढ़े ही थे तभी दुकानदार लपककर दुकान के बाहर आया और सोपान जी को वहीं पकड़ लिया। बोर्ड की ओर इशारा करते हुए उसने कहा, ´´देखिए भाई साहब, आपके कहने से मैंने कहानी को पहले लघुकथा बनाया, उसके बाद लघुकथा भी हटा दी। अब उसका शीर्षक शेष रह गया है। और अगर आपने ´दूध´ भी हटाने के लिए कहा तो अस्तित्व का संकट पैदा हो जाएगा।´´
´´अरे नहीं भइया! मैं तो अब सिर्फ आपको धन्यवाद ही कहना चाहता हूँ जो आपने इतनी विनम्रता से मेरे सुझाव स्वीकार किए। मुझे आप जन्मजात दूधिए तो नहीं लगते। क्या पूछ सकता हूं कि इस धंधे से पहले आप क्या करते थे?´´
´´जी, मैं साहित्यिक गुटबंदी का मारा हुआ एक असफल लेखक हूँ। और श्रीमान् जी, आप....?´´
´´मैं... मैं एक लोकप्रिय मासिक पत्रिका का सद्य-सेवानिवृत्त संपादक हूँ।´´
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