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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781613016374

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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख


मैंने उनसे कहा भी कि मुझे कहां इस पचड़े में फंसा रहे हो! मेरी जैसी रचनाएं हैं उन्हें प्रसारित करने से तुम्हारी नौकरी खतरे में पड़ जाएगी। पर उन्होंने अपनी ज़िद नहीं छोड़ी और कहने लगे कि मुझे अपनी बात कहने की पूरी आज़ादी है। इस तरह घेर-घार कर उन्होंने मुझसे ´दुखमोचन´ तो लिखा लिया परंतु उसे लिखते समय उनकी नौकरी जाने का खतरा मुझे बराबर सताता रहा। इसीलिए इस उपन्यास का स्वर मेरे अन्य उपन्यासों की तरह नहीं हो पाया। यह उपन्यास आकाशवाणी के लखनऊ-इलाहाबाद केन्द्र से तेरह किस्तों में जुलाई, अगस्त और सितम्बर 1956 के दौरान समग्र रूप से प्रसारित किया गया।´´

बाबा चुप हो गए पर पाठक की जिज्ञासाओं का अन्त नहीं था। उसने पूछा, ´´क्या प्रसारण के समय मूल उपन्यास में कोई काट-छांट की गई थी?´´

´´हां, एक प्रसंग मुझे याद आ रहा है। वह था- ´पन्द्रह अगस्त की रात है, चांदनी रात में तिरंगे की छाया में एक कुत्ता सो रहा है।´ लेकिन किताब छपने पर यह प्रसंग उसमें जोड़ दिया।´´

यह सब बताकर बाबा पाठक को रुपये देने लगे तो उसने कहा, ´´पैसे रहने दीजिए, लेकिन कान पकड़िए कि फिर कभी ऐसी गलती नहीं करेंगे।´´

बाबा ने कान पकड़े और कहा, ´´हे खोजी पाठक, ऐसी गलती अब फिर कभी नहीं करुंगा।´´

और बाबा ने फिर वैसी गलती नहीं की।

* *

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