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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781613016374

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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख

औरों से अलग


बड़ौदा (बडोदरा) के एक कालेज के विद्यार्थियों ने जब सुना कि उनके प्रिय प्राचार्य कालेज छोड़कर कहीं अन्यत्र जा रहे हैं तो उन्हें बड़ी निराशा हुई। उन्होंने सोचा कि यदि ´सर´ को मनाएं तो शायद वे रुक जाएं। अतः विद्यार्थियों का एक दल प्राचार्य के आवास पर पहुंचा। आवास क्या था वस्तुतः किसी संत का एक कमरे का आश्रम-सा था! बिस्तर के नाम पर एक चटाई और कंबल एक कोने में रखे थे। बड़ौदा की कड़ाके की सर्दी से मुकाबला करने के लिए वस्त्र-संपदा के रूप में दो तीन सूती कपड़े अलगनी पर टंगे हुए थे। हां, कमरा अवश्य किताबों से अटा पड़ा था। अंग्रेजी, लेटिन, ग्रीक, फ्रेंच, जर्मन, इटैलियन, रशियन, हिब्रू, फारसी, संस्कृत, बांग्ला जैसी जाने कितनी भाषाओं की पुस्तकों के अंबार लगे थे।

विद्यार्थियों के इस दल की अगुवाई कर रहे छात्र कन्हैयालाल माणिकलाल मुन्शी ने कहा, ´´सर, सुना है आप हमारा कालेज छोड़ कर जा रहे हैं।´´

´´ठीक सुना है´´, प्राचार्य ने संक्षिप्त उत्तर दिया।

´´फिर हमें कौन पढ़ाएगा, सर?´´ उसी छात्र ने चिंता जाहिर की।

´´कोई नया व्यक्ति।´´ प्राचार्य ने सरलता से कहा।

´´अशिष्टता के लिए क्षमा करें तो क्या एक बात पूछ सकता हूं?´´

´´हां, पूछो।´´

´´क्या यहां वेतन कुछ कम है, सर।´´ छात्र के संकोच की सीमा नहीं थी।

´´नहीं मेरे बच्चे। यहां अभी 710 रु. हर माह मिलता है और जिस नए कालेज में जा रहा हूं वहां मिलेगा सिर्फ 70 रु. प्रतिमाह।´´

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