जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप कवि प्रदीपसुधीर निगम
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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।
‘ऐ मेरे वतन...’ का जब अधिकार बेचने का प्रस्ताव आया तो प्रदीप ने कहा कि जिस गीत के शब्दों के किनारे जवाहर लाल के आंसुओं की झालर लगी हो उसे बेचा नहीं जा सकता। इस गीत से होने वाली आय उन्होंने सैनिक कल्याण कोष में दान कर दी। लता जी ने इस गीत को गाने की कोई फीस नहीं ली थी। उन्होंने 1997 में इस गीत के लिए प्रदीप को एक लाख रूपए का व्यक्तिगत पुरस्कार दिया।
यद्दपि साहित्यिक जगत में प्रदीप की रचनाओं का मूल्यांकन पिछड़ गया तथापि फिल्मों में उनके योगदान के लिए भारत सरकार, राज्य सरकारें, फिल्मोद्योग तथा अन्य संस्थाएं उन्हें सम्मानों और पुरस्कारों से अंलकृत करते रहे। 1961 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ फिल्मी गीतकार का पुरस्कार राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद द्वारा दिया गया। 1995 में राष्ट्रपति द्वारा ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि दी गई। और... सबसे अंत में, जब उनका अंत करीब था फिल्म जगत में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1998 में भारत के राष्ट्रपति के. आर. नारायण द्वारा प्रतिष्ठित दादा साहब पुरस्कार दिया गया। सुश्री मितुल जब अपने बीमार पिता प्रदीप को पहिया कुर्सी पर बिठाकर पुरस्कार मंच की ओर बढ़ रहीं थीं तो हाल में ‘दूर हटो ए दुनिया वालो’ गीत बज रहा था। सभी उपस्थित जन अपनी जगहों पर खडे़ हो गए। उनकी आंखों में आंसू थे। राष्ट्रपति ने पहले प्रदीप के स्वास्थ्य के बारे में पूछा, फिर पुरस्कार प्रदान किया। जब वे लौटने लगे तो दूसरा गीत बज उठा, ‘हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के...।’ लोग अब भी खड़े थे और तालियां बजा रहे थे। राष्ट्रपति-भवन में पुरस्कार वितरण के दौरान फिल्मी गीतों का बजना एक अभूतपूर्व घटना थी।
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