जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप कवि प्रदीपसुधीर निगम
|
0 |
राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।
लेकिन प्रदीप को गगनचुम्बी गौरव, प्राणेय प्रशंसा और आत्म-संतुष्टि एक गैर-फिल्मी गीत से मिली जिसने लोकप्रियता के अभूतपूर्व कीर्तिमान निर्मित किए। यह गीत उन्होंने फिल्म जगत में रहते हुए लिखा। 1962 में चीन से करारी पराजय के बाद पूरा देश हीनता के पारावार में डूब गया था। 26 जनवरी 1963 को पं. नेहरू ने शहीद सैनिकों की याद में दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में एक विशेष श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कराया। इस समारोह में लता मंगेशकर को एक गीत गाना था। समारोह का संचालन दिलीप कुमार कर रहे थे। जैसे ही लता जी का नाम लिया गया वे स्टेज पर आईं। माइक संभाला तो सी. रामचन्द्र का आर्केस्ट्रा बज उठा। लता जी ने प्रदीप का गीत गया-
ऐ मेरे वतन के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी।
जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी।
गीत की एक-एक पंक्ति श्रोताओं के हृदय में उतरती चली गई। हृदय भर उठे, आंखें उमड़ पड़ीं, पंडिज जी रो पड़े, संयम के बावजूद लता का गला भर आया। गीत समाप्ति के बाद ऐसे मार्मिक गीत के रचयिता प्रदीप के बारे में पंडित जी ने पूछा। पता चला आयोजकों ने उन्हें बुलाया नहीं है। पंडित जी निराश हो गए। सत्य तो यह था कि प्रदीप के जोर देने पर ही लता जी ने यह गीत गाया था अन्यथा, कुछ वर्षों से, वे सी. रामचन्द्र के निर्देशन में गीत नहीं गा रहीं थीं। कुछ हफ्तों बाद पंडित जी जब मुम्बई पहुंचे तो उन्होंने प्रदीप की तलाश करवाई। वे एक स्कूल में थे, तो वहीं पहुंच गए और ‘ए मेरे वतन के लोगो’ उनके कंठ से सुना। पंडित जी ने कहा, ‘भई, तुम तो गाते भी इतना अच्छा हो, यहाँ तो आर्केस्ट्रा भी नहीं है।’’ प्रदीप ने बस इतना कहा, ‘‘यह गीत मेरे हृदय की वेदना का प्रतीक है, जिसके लिए वाद्य सामग्री की आवश्यकता नहीं होती है।’’ इसी मुलाकात के दौरान नेहरू जी को पता चला कि ‘चल चल रे नौजवान’ और ‘दूर हटो ए दुनिया वालो’ गीत भी प्रदीप ने ही लिखे थे। उन्हें यह भी मालूम पड़ा कि छात्र जीवन में प्रदीप इलाहाबाद स्थित उनके निवास ‘आनंद भवन’ के पीछे रहते थे। नेहरू जी ने कहा था, ‘‘यदि कोई ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत से प्रभावित नहीं होता तो वह हिंदुस्तानी नहीं है।’’
|