जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप कवि प्रदीपसुधीर निगम
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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।
आठ गीतों के स्वरकार स्वयं प्रदीप रहे जिन्हें लीला चिटणीस, अशोक कुमार, देविका रानी, अरुण कुमार आदि ने गाया। कितने गीत चले इसका विवरण यथास्थान दिया जा चुका है। उनका सम्रग मूल्यांकन करते हुए भोपाल के प्रो. त्रिभुवन लाल शुक्ल लिखते हैं, ‘‘(प्रदीप की) यह यात्रा विविध वर्णी है। फिल्मों की प्रकृति की दृष्टि से गीत भले ही सहज और सरल हैं परंतु इनकी भावों की गहराई बहुत उद्वेलित करती है। परिवार, समाज, देश, राष्ट्र और राजनीतिक उतार-चढ़ाव के अतिरिक्त इनके गीतों में अध्यात्म और दर्शन के भी पुट हैं। ऐसे भावों के पीछे उनके वैष्णव मन की ताकत सहवर्ती के रूप में दिखाई देती है।’’
प्रदीप की काव्य सरिता में बहते हुए हम उनके जीवन के कई महत्वपूर्ण पड़ावों को पीछे छोड़ आए हैं। इस आलेख की समग्रता के लिए उनका यहाँ उल्लेख आवश्यक है। प्रदीप का विवाह मुम्बई निवासी चुन्नीलाल भट्ट (गुजराती ब्राह्मण) की पुत्री सुभद्रा वेन से 1942 में हुआ था। विवाह से पूर्व कवि ने अपनी भावी पत्नी से एक प्रश्न पूछा था, ‘‘मैं आग हूं, क्या तुम मेरे साथ रह सकोगी?’’ इसका बड़ा माकूल उत्तर सुभद्रा बेन ने दिया, ‘‘जी हां, मैं पानी बनकर रहूंगी।’’ इसका निर्वाह उन्होंने जीवन भर किया। 1950 में विले पार्ले में एस.बी. रोड पर 700 गज का प्लाट खरीदकर 70 हजार रुपए में प्रदीप ने शानदार बंगला बनवाया। बंगला साहित्यिक मित्रों के स्वागत के लिए सदैव खुला रहता था। अमृत लाल नागर छह महीने तक इस बंगले में रहे। प्रदीप दम्पति की दो पुत्रियां हुईं- मितुल और सरगम।
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