लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10543
आईएसबीएन :9781613016312

Like this Hindi book 0

राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।


प्रदीप के अधिकांश फिल्मी गीत विशद व्याख्या की मांग करते हैं! उनका राष्ट्र-प्रेम तो सिद्ध था, साथ ही उनका साहित्यकार मन सदा उनके साथ रहा। जहाँ स्थान मिलता वहाँ रसों की निष्पत्ति करने, रस की निष्पत्ति के लिए आवश्यक गुणों का आधान करने और अलंकारों की आभूषण-माला पहनाने से नहीं चूकते। परंतु इस आलेख के कलेवर में इन्हें समो पाना कठिन है। अब तनिक गीतों से हटकर प्रदीप के आसपास घट रही और उन्हें प्रभावित करने वाली घटनाओं पर हम सरसरी दृष्टि डालेंगे।

हिमांशु राय के निधन के पश्चात ही बाम्बे टाकीज में जो राजनीति दबे पांव घुस गई थी अब वह सतह पर आ गई। दोनों यूनिटों में संघर्ष तेज हो गया। मामला अदालत तक गया। फैसला देविका रानी के पक्ष में हुआ। देविका रानी फिल्म जगत से ऊब चुकी थीं क्योंकि उसका एक स्वार्थों से भरा स्याह चेहरा उन्होंने देखा था। उन्होंने चार फिल्मों का निर्माण किया था जिसमें दिलीप कुमार की पहली फिल्म ‘ज्वार भाटा’ (1944) भी शामिल थी। सभी फिल्में फ्लाप हो गईं थीं। उन्हें लगा कि चित्रपट जगत से सदैव के लिए विदा लेने का अवसर आ गया है। रूसी चित्रकार स्वेतोस्लोव रोरिक से शादी करने के बाद उन्होंने 1945 में बाम्बे टाकीज बेच दिया और मुम्बई से चली गईं । बाम्बे टाकीज के मालिक बदल गए थे और निर्देशक नितिन बोस उससे जुड़कर दिलीप कुमार के साथ सफल फिल्में बना रहे थे।

राय बहादुर चुन्नी लाल के साथ शषधर मुकर्जी, ज्ञान मुकर्जी, अशोक कुमार, सावक वाचा और कवि प्रदीप बाम्बे टाकीज से अलग हो गए। अपने शेयर के पैसों से इन लोगों ने ‘फिल्मिस्तान’ नामक कंपनी की स्थापना की और फिल्म निर्माण की योजना प्रारंभ की। बाम्बे टाकीज छोड़ने का निर्णय प्रदीप पर भारी पड़ा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book