जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप कवि प्रदीपसुधीर निगम
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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।
फिल्मिस्तान की पहली फिल्म ‘चल चल रे नौजवान’ (1944) थी। जितनी आशा थी उतनी न फिल्म चली न गाने चले। इस फिल्म के लिए प्रदीप ने 12 गाने लिखे थे। फिल्म के असफल होने पर इस संस्था में भी राजनीति आ गई। उन्होंने प्रदीप को अलग-थलग कर दिया और गाने लिखाने बंद कर दिए। प्रदीप फिल्मिस्तान से हुए कान्ट्रेक्ट से बंधे थे। वेतन मिल रहा था पर काम नहीं। कवि के कोमल मन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ा। वे नहीं चाहते थे कि उनकी कलम कुंठित हो जाए अतः, अपनी आत्मा की आवाज के विरुद्ध, मिस कमल बी.ए. के छद्म नाम से बाहर की फिल्मों के गीत लिखने लगे। लक्ष्मी प्रोडक्शन्स की तीन फिल्में- ‘कादम्बरी’ (1944), ‘सती तोरल’ (1947), ‘वीरांगना’ (1947) तथा मुरली मूवीटोन की एक फिल्म ‘आम्रपाली’ (1945) के गीत लिखे। इस बीच फिल्मिस्तान ने प्रदीप से 1946 में ‘शिकारी’ फिल्म के लिए गीत लिखवा लिए। इन फिल्मों के गीतों में साहित्यिकता भले ही हो पर पहले जैसी लोकप्रियता का तत्व कहीं खो गया था।
छद्म नाम से लिखते-लिखते और फिल्मिस्तान की राजनीति से प्रदीप ऊब चुके थे। अतः उन्होंने फिल्मिस्तान से अलग होकर, अपने सहयोगियों की मदद से, ‘लोकमान्य प्रोडक्शन्स’ नामक फिल्म निर्माण संस्था बनाई। 1949 में पहली फिल्म आई ‘गर्ल्स स्कूल’ जिसमें प्रदीप के नौ गाने थे। सी. रामचन्द्र और अनिल विश्वास जैसे संगीतकारों का निर्देशन, लता और शमसाद, (एक-दो गानों को छोड़कर) का गायन भी कोई करिश्मा नहीं कर पाया। प्रदीप समझ गए कि फिल्म कंपनी चलाना उनके बस की बात नहीं, क्योंकि उससे उनकी मुख्य धारा कुंठित हो रही थी। अतः वे लोकमान्य प्रोडक्शन्स से अलग हो गए और स्वतंत्र रूप से लिखने लगे।
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