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कवि प्रदीप
कवि प्रदीप
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2017 |
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 10543
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आईएसबीएन :9781613016312 |
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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।
इस गीत के बारे विश्वनाथ गुप्त लिखते हैं, ‘‘इसने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के तुरंत बाद जनता में नई चेतना का संचार किया, देश के नौजवानों में नए प्राण फूंक दिए। लेखनी से भी राष्ट्र की सेवा की जा सकती है, राष्ट्रीय भावना का प्रसार किया जा सकता है, उत्सर्ग की भावना जगाई जा सकती है, प्रदीप ने अपने गीत से यह सिद्ध कर दिया।’’
तत्कालीन ब्रिटिश सरकार को कवि की यह हुंकार नागवार लगी। उसे लगा इस गीत से हुकूमत के विरुद्ध बगावत का ऐलान किया गया है। अंग्रेजों को लगा कि यह उन्हें भारत से बाहर निकालने की फिल्म वालों की गहरी साजिश है। अतः इस गाने की जब्ती के बाद डिफेंस आफ इंडिया रूल्स की दफा 26 के तहत गीतकार प्रदीप को, जांच के बाद अनिश्चित काल के लिए भेजा जा सकता था। अभियोजन अधिकारी धर्मेद्र गौड़ को इस मामले की तफतीश करने को कहा गया। उन्होंने कई बार फिल्म देखने के बाद अपनी रिपोर्ट देते हुए कहा, ‘‘इस गाने में प्रदीप ने जर्मनी और जापान को अपना निशाना बनाया है अंग्रेजों को नहीं। प्रदीप धोती कुर्ता पहनते जरूर है पर कांग्रेसी नहीं हैं और क्रांतिकारी भी नहीं हैं।’’ मामला खत्म हुआ। वास्तव में प्रदीप जानते थे कि इस गीत पर अंग्रेज हायतोबा मचाएंगे, इस कारण उन्होंने गीत में एक पंक्ति डाल दी थी- ‘तुम न किसी के आगे झुकना, जर्मन हो या जापानी।’ यही पंक्ति अभियोजन अधिकारी की रिपोर्ट का आधार बनी।
इस गीत का उल्लेख करते हुए नेहरू जी ने अपने संस्मरणों में लिखा है- ’’प्रदीप जी दूरदर्शी थे, उन्होंने चित्रपट की क्षमता को पहचान कर एक सशक्त माध्यम के रूप में उसका इस्तेमाल स्वतंत्रता आंदोलन एवं ब्रिटिश राज से लड़ने वालों के पक्ष में किया।’’
प्रदीप ने एक अवसर पर नेहरू जी से कहा था, ‘‘देशभक्ति के गाने लिखना मेरा रोग है, मैं इस रोग से ग्रस्त हूं।’’
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