लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10543
आईएसबीएन :9781613016312

Like this Hindi book 0

राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।


इसके बाद प्रदीप ने ‘पुनर्मिलन’ (1940), अनजान (1941), झूला (1941), नया संसार (1941) के गीत लिखे। ‘झूला’ में दार्शनिकता से ओतप्रोत गीत ‘न जाने किधर आज मेरी नाव चली रे’ से स्वयं इसके गायक अशोक कुमार इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इच्छा व्यक्त की कि यह गीत उनकी अंतिम यात्रा में बजाया जाए। अरुण कुमार का गाया गीत ‘मैं तो दिल्ली से दुल्हन लाया रे, ए बाबू जी’ खासा प्रसिद्ध हुआ। फिर 1943 में सभी कीर्तिमानों को भंग करने वाली प्रदीप और अनिल विश्वास के गीत-संगीत से सजी, अशोक कुमार की अदाकारी से मकबूल, अमीर बाई की खनकती आवाज में निबद्ध, टिकट खिड़की को ध्वस्त करने वाली सामाजिक आशय का सम्यक स्वरूप निरूपित करती फिल्म ‘किस्मत’ आई। यह फिल्म कलकत्ता के राक्सी थियेटर में लगातार 3 वर्ष 8 महीने तक प्रदर्शित की जाती रही। प्रदीप के गीत इस फिल्म के प्राण थे। चाहे, धीरे धीरे आ रे बादल हो या अब तेरे बिना कौन मेरा कृष्ण कन्हैया हो, अथवा दुनिया बता हमने बिगाड़ा है क्या तेरा और पपीहा रे मेरे पिया से कहियो जाय रे हो सभी प्रसिद्ध हुए, जन-जन के मुख पर आ गए। गीतों के रिकार्डों की रिकार्ड तोड़ बिक्री हुई।

लेकिन... लेकिन फिल्म के सभी गीतों का शिरोमणि गीत था-

आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है,
दूर हटो ऐ दुनिया वालो ये हिंदुस्तान हमारा है।

‘चल चल रे नौजवान’ की तरह इसे भी दर्शकों की मांग पर सिनेमा घरों में दोबारा दिखाना पड़ता था। जेल में बंद आजादी के दीवाने इस गीत को अक्सर गुनगुनाया करते थे ताकि उनकी देश-भक्ति की आग मद्धिम न हो। पं. जवाहर लाल नेहरू उन में से एक थे। अनिल विश्वास के निर्देशन में अमीरबाई की आवाज ने इस गीत को अमर कर दिया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai