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जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10543
आईएसबीएन :9781613016312

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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।

राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप फिल्मी गीतकार के रूप में एक सितारा बनकर चमके। फिल्म-क्षेत्र में प्रवेश करते ही अपनी प्रतिभा के बल पर शीघ्र ही उन्होंने एक अलग स्थान बना लिया। फिल्म जैसे व्यावसायिक क्षेत्र में रहते हुए प्रदीप जी ने फिल्मी गीत अपनी शर्तों पर लिखे, कभी समझौता नहीं किया। लोकमन के चितेरे प्रदीप ने सहज, सरल और गुनगुनाए जाने वाले अर्थपूर्ण गीत लिखे। लगभग 650 फिल्मी और गैर-फिल्मी गीत लिखने वाले प्रदीप ‘ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी...’ जैसे गैर-फिल्मी गीत लिखकर गीत के साथ खुद भी अमर हो गए। उनकी फिल्मी-यात्रा लगभग 50 वर्ष तक चली।

पढिए, अपने कुछ गीतों को अपना मधुर स्वर देने वाले प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी-

 

कवि प्रदीप

राष्ट्रीय अस्मिता के गीतकार

‘स्मृतियां खेत भी होती हैं खंडहर भी। जल भी होती हैं तेजाब भी। राग भी होती हैं द्वेष भी। सहलाती हैं तो खरहरे की तरह छील भी डालती हैं। कभी उन्हें सरसब्ज खेतों की तरह समेट लेने का मन करता है तो कभी जली हुई बस्ती की तरह छोड़कर भाग जाने का। कभी अंधेरे कुएं में उतर जाती हैं तो लगता है कभी लौटेंगी नहीं। लेकिन उनके पर होते हैं, अचानक अबाबीलों की तरह उड़ती हुई चली आती हैं।’ लेकिन स्मृतियां जब सिर्फ हरी हों, विस्मृति के कुएं में कभी उतरी ही न हो तो इस कथन से पूर्णतया सहमत होना कठिन है। जब स्मृति में भाईचारे का पैगाम देने वाला प्रदीप जैसा कवि हो तो यादें सरसब्ज खेतों की तरह और हरी हो उठती हैं। वर्ष 2015 कवि प्रदीप का जन्म शताब्दी वर्ष है, इस बहाने उनके व्यक्तित्व और फिल्मों में उनके गीतों के सफर पर एक दृष्टि डाल लेने का अच्छा अवसर है। अस्तु-

6 फरवरी 1915 को उज्जैन जिले के बड़नगर कस्बे के जूनाशहर नामक मोहल्ले में नारायण भट्ट (दवे) के घर दूसरे पुत्र ने जन्म लिया। इस बच्चे को रामू नाम से पुकारा गया। आगे बढ़ने से पहले जन्म स्थान का ऐतिहासिक महत्व भी जान लेते हैं। जन्म का स्थान उज्जैन जिले में रतलाम और इंदौर के बीच चामला नदी के किनारे मालवा के पठार पर स्थित है। मालवा प्राचीन काल में अवन्ति के नाम से जाना जाता था। यहीं उज्जयनी के महर्षि सांदीपनी का गुरुकुल था जिसमें कृष्ण, बलराम और सुदामा भी पढ़ने आते थे।

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