जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप कवि प्रदीपसुधीर निगम
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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।
राजकपूर को सहारा
1970 में देश के महान फिल्मकार राजकपूर की महत्वाकांक्षी फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ बाक्स आफिस पर बैठ गई। राजकपूर के सपने खील-खील होकर बिखर गए। दर्शकों को उनकी यह लम्बी और दार्शनिकता से भरपूर फिल्म नहीं भाई। नीरज का लोकप्रिय गीत ‘ए भाई जरा देख के चलो’ भी इसे उबार नहीं पाया। राजकपूर ने इस पर पानी की तरह पैसा बहाया था। वे फिल्म के असफल होने पर दुखी और उद्विग्न रहने लगे।
इसी समय उन्हें कई वर्ष पूर्व प्रदीप का गाया और नियतिवाद पर लिखा एक चमत्कारिक गीत ‘कोई लाख करे चतुराई। करम का लेख मिटे न भाई’ की याद आई। प्रदीप से परिचय था ही अतः उसका रिकार्ड मंगवा लिया। उन बुरे दिनों में वह गीत उनका बहुत सहारा बना। इस गीत के प्रभाव से राजकपूर को अपने मन को नियंत्रण में करने की कला आ गई।
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