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जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10543
आईएसबीएन :9781613016312

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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।


भवितव्यता के लिए मिली सहाय

प्रदीप बी.ए. की परीक्षा दे चुके थे और उसके परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे थे। उनके शुभचिंतक  श्रीनारायण चतुर्वेदी चाहते थे कि प्रदीप बी.ए. के बाद सी.टी. (अध्यापक प्रशिक्षण) का डिप्लोमा प्राप्त करके साठ-सत्तर रुपए की सरकारी अध्यापकी प्राप्त कर जीवन निर्वाह के लिए निश्चिंत हो जाएं। कहावत ‘मेरे मन कुछ और है विधना के मन कुछ और’ प्रदीप के जीवन पर घटित होती है। प्रदीप को पता चला कि हरिद्वार में प्रणव मंदिर के उद्घाटन समारोह में देश के विभिन्न भागों से खास लोग आ रहे हैं तो प्रदीप भी वहीं जा पहुंचे। समारोह तो एक बहाना था विधि ने तो गुजरात के स्वामी नित्यानंद जी महाराज से उनकी भेंट निश्चित कर रखी थी। अतः समारोह के बाद प्रदीप ने स्वामी जी के चरणों में प्रणाम किया। स्वामी जी किसी सूत्र से प्रदीप का नाम और कवि रूप में ख्याति के बारे में जान चुके थे। स्वामी जी ने प्रदीप को देखा और उनसे एक कविता सुनाने को कहा। प्रदीप ने रचना सुनाई-

मुरलिके, छेड़ सुरीली तान
सुना, सुना अयि मादक अधरे, विश्व विमोहन गान
मुरलिके, छेड़ सुरीली तान।

प्रात जगा सोई विभावरी
खग-कुल ने छेड़ी असावरी,
तू ध्वनि विरहित पड़ी बावरी
उठ, अब सत्वर, तू भी सजधज, कर ले स्वर संधान।
मुरलिके छेड़ सुरीली तान। ...

सारा उपस्थित समाज शब्द-सौंदर्य और स्वर-माधुरी से मंत्रमुग्ध हो गया। स्वामी जी प्रसन्न हो गए। उन्होंने पूछा, ‘‘आगे क्या इरादा है ?’’

प्रदीप ने कहा, ‘‘शिक्षक बनने का।’’

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