जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप कवि प्रदीपसुधीर निगम
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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।
स्वामी जी ध्यानस्थ हो गए जैसे अदृश्य के लेख पढ रहे हों। चैतन्य होकर कहा, ‘‘पर तुम्हारा भविष्य तो कुछ और ही दिखाई दे रहा है। तुम्हारा अभ्युदय पश्चिम दिशा में होना है, और वह भी दो महीने में।’’ प्रदीप ने सुना पर चुप रहे।
संयोग ने अपना दरवाजा खोला। गुजरात से आए चित्रकार रविशंकर रावल प्रदीप के काव्य-पाठ से बहुत प्रभावित हुए। काव्य-प्रेमी थे अतः प्रदीप को साग्रह अपने साथ अहमदाबाद ले गए। वहाँ काव्य गोष्ठियां होती रहीं और प्रदीप उनमें आनंद लेते रहे। तभी मुम्बई में बाम्बे टाकीज के छायांकन विभाग में कार्यरत रविशंकर के पुत्र नरेन्द्र रावल का तार आया कि वह बीमार है। वास्तव में वह अपने पिता से मिलना चाहता था तभी झूठा तार भेज दिया। रविशंकर मुम्बई जाने लगे तो अपने साथ प्रदीप को भी घसीट ले गए। रविशंकर ने वहाँ सब ठीक पाया तो संतोष की सांस ली।
एक दिन गोकुल भाई हाई स्कूल के सभागार में हिंदी-प्रेमियों के लिए प्रदीप के काव्य-पाठ का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में नरेंद्र रावल बाम्बे टाकीज की फिल्मों के सह-निर्देशक एन.आर. आचार्य को भी ले आए। प्रदीप ने अपने गीतों से अच्छी महफिल जमाई, श्रोता झूमने लगे। वहाँ से लौटकर आचार्य ने बाम्बे टाकीज के मालिक और दिग्गज फिल्म निर्माता हिमांशु राय को प्रदीप के बारे में बताया। आगे के घटना-चक्र के बारे में प्रदीप स्वयं बताते हैं, ‘‘दूसरे दिन मेरे पास बाम्बे टाकीज की गाड़ी आई। उसमें से एक सज्जन (ए.आर. आचार्य) उतरे और पास आकर कहा कि उनके बॉस मेरी कविता सुनना चाहते हैं। उन्होंने बताया वे बंगाली हैं पर हिंदी समझ लेते हैं। उनकी पत्नी देविका रानी गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर की रिश्तेदार हैं। (देविका रानी की मां सुकुमारी देवी गुरुदेव की प्रपौत्री थीं)। खैर, मैं बाम्बे टाकीज पहुंच गया।’’
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