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जीवनी/आत्मकथा >> अरस्तू

अरस्तू

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :69
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10541
आईएसबीएन :9781613016299

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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…


असोस में हर्मियस को पारसीक राज्य ने शासक नियुक्त किया था। हर्मियस की महत्वाकाक्षाएं बहुत बड़ी थीं। वह एशिया कोचक को परसिया के शासन से मुक्त कराना चाहता था और असोस का स्वतंत्र शासक बनना चाहता था। अपनी इस योजना में सहायता के लिए उसका मकदूनिया के फिलिप द्वितीय से गुप्त पत्र-व्यवहार चलता रहा था। दुर्भाग्य से पारसीक राज्य को उसकी दुरभिसंधि का पता चल गया। जब संशय के लिए कोई अवकाश न रहा तो एक दिन पारसीक सेनापति ने हर्मियस को किसी परामर्श के बहाने नगर के बाहर बुलाया और बंदी बना लिया। उस पर प्रतिकार के सर्प का विष चढ़ चुका था। पहले उसने मकदूनियां के मनसूबों को जानने का प्रयत्न किया गया और न बताने पर हर्मियस का वध कर दिया गया।

इस घटना के कारण, यूनानियों ने हर्मियस को परसिया की बर्बरता से यूनानी सभ्यता को मुक्त कराने के प्रयत्न करने वाला शहीद समझा और डेल्फी में उसकी मूर्ति की स्थापना की। अरस्तू इस घटना के समय असोस में ही था। उसने अपने दिवंगत मित्र हर्मियस की प्रशंसा में काव्य पंक्तियां लिखीं। वर्तमान घटना के कारण उसे असोस छोड़ना पड़ा और बाद में इन्हीं काव्य-पंक्तियों के कारण, जो व्यक्ति प्रशंसा के कारण ईश निंदा के समान मानी गईं, उसे एथेंस से पलायन करना पड़ा।

इस समय अरस्तू अपने जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा था। घोर संकट मुंह बाए खड़ा था। हर प्रकाशमान की नियति चारो ओर से अंधकार में घिरने की होती है। हर्मियस के निकट संपर्क में रहने के कारण अरस्तू को पारसीक राज्य कर्मचारियों द्वारा पकड़े जाने का पूरा भय था। पीथियास को लेकर उसके शत्रुओं का संदेह और बढ़ गया था।

अरस्तू ने असोस छोड़ने का निर्णय लिया। उसके मन का एक कोना दुखी हो गया। मित्रों के विछुड़ने का गम था। पर असोस से सुरक्षित निकलना जरूरी था। उन दिनों मार्ग लुटेरों से घिरे हुए रहते थे। अरस्तू ने आशा की मिटती हुई छाया को पकड़ा और किसी तरह खतरों का सामना करता, कर्मचारियों की निगाहों से बचता पत्नी को साथ लिए, लेस्बास नामक द्वीप में पहुंचा। वास्तव में अरस्तू थियोफ्रेस्टस के पास पहुंच गया था। वह इस द्वीप के एरेसस नामक स्थान का निवासी था और उनकी प्लेटो की अकादमी में भेंट हुई थी। थियोफ्रेस्टस ने, जो कालांतर में अरस्तू के निधन के पश्चात उसके स्कूल लीकियम का संचालक बना, अरस्तू को शरण दी और उसकी भरपूर सहायता की। अनुमान किया जाता है कि लेस्बास प्रवासकाल में अरस्तू ने जन्तु विषयक निरीक्षण किए थे जो उसके हिस्टोरिया एनीमैलिय (जंतुओं का इतिहास) में पाए जाते हैं।

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