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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…
नए नीड़ की तलाश
अरस्तू का एथेंस छोड़ने का कारण कुछ भी रहा हो, ईसा पूर्व 347 में उसने जेनोक्रातिस के साथ ट्राय की ओर स्थित एओलिक नगर असोस में बसने का इरादा बनाया। असोस में बसने का इरादा संयोग मात्र नहीं था। प्लेटो की अकादमी के दो भूतपूर्व प्रमुख सदस्य एरास्तोसा और कोर्सिकोस पहले से ही वहां बस गए थे। वस्तुतः अपने जीवन के परवर्ती भाग में प्लेटो ने विद्वानों की छोटी-छोटी अकादमियां विभिन्न स्थानों पर स्थापित की थीं। ऐसी ही एक अकादमी की स्थापना असोस में की गई थी। स्थानीय शासक हर्मियास के संरक्षण के परिणामस्वरूप असोस की अकादमी तेजी से फलने-फूलने लगी।
अरस्तू ने असोस निवासी युवा दार्शनिक थियोफ्रेस्तोस का सहयोग प्राप्त करने के लिए उसे अकादमी की शाखा में आमंत्रित किया। थियाफ्रेस्तोस जो किसी समय प्लेटो का शिष्य था अब अरस्तू का विश्वासपात्र शिष्य और सहयोगी बन गया। अरस्तू की मृत्यु के पश्चात उसकी सभी हस्तलिखित कृतियां उत्तराधिकार के रूप में थियोफ्रेस्तोस को प्राप्त हुई थीं। दर्शन के इतिहास की धारा को प्रभावित करने में जो योगदान इन कृतियों का है उसकी प्रारंभ में कल्पना ही नहीं की गई थी।
हर्मियस प्लेटो की अकादमी में अरस्तू का सहपाठी रह चुका था। उसने असोस में प्लेटो की योजनानुसार अकादमी की शाखा स्थापित की थी और प्लेटो को कई बार आने का नियंत्रण भी दिया था। प्लेटो वहां न जा सका। अब इस शाखा को पुष्ट करने के लिए दूरदृष्टि प्रेरक चिंतन और अंधकार भेदक प्रज्ञा लेकर युवा दार्शनिक अरस्तू आ चुका था।
अरस्तू के व्यक्तिगत संबंध अपने आश्रयदाता हर्मियास से इतने मधुर थे कि उसने अपनी भतीजी और गोद ली हुई पुत्री पीथियास का विवाह अरस्तू के साथ कर दिया। उपलब्ध साक्ष्यों से पता चलता है कि अरस्तू और पीथियास का विवाह परंपरागत रीतिरिवाजों के अनुसार हुआ था और हर्मियास ने स्वयं इस वैवाहिक संबंध का प्रस्ताव रखा था। वैवाहिक जीवन का अधिक उल्लेख न होने के कारण यही निष्कर्ष निकलता है कि उनका गृहस्थ जीवन आराम से बीता।
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