जीवनी/आत्मकथा >> अकबर अकबरसुधीर निगम
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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...
चहुंओर बैरी ही बैरी
हुमाऊँ की मृत्यु की खबर सुनते ही भारत की मुख्य भूमि पर फैले दुश्मनों ने चारो ओर सिर उठाने शुरू कर दिए। अकबर के नाम का उन्हें डर नहीं था। हाजी खां ने नारनौल को घेर लिया। वह शेरशाह का आदमी था। राजा बिहारीमल कछावा, जिसे हुमाऊँ की कृपा से राज्य मिला था, हाजी खां से मिल गया। नारनौल का जागीरदार दुर्ग में कैद था। उसकी सेना की हालत बहुत बुरी हो चुकी थी। अकबर ने दिल्ली के अपने फौजदार तर्दी बेग को मोर्चा लेने भेजा। उसने हाजी खां को हराकर भगा दिया।
18 अक्टूबर 1556 को अकबर के पास खबर पहुंची कि मुहम्मद शाह आदिल के सेनापति हेमू ने आगरे पर अपना अधिकार कर लिया है और बादशाह बनने का ख्वाहिशमंद होकर दिल्ली की ओर बढ़ रहा है। उसके साथ भारी सेना और बड़ी संख्या में हाथी और तोपें हैं। अगर समय रहते सेना की मदद न पहुंची तो दिल्ली को हेमू से बचाना मुश्किल हो जाएगा।
हेमू का असली नाम था हेमचंद्र राय। शुरू में वह शोरे का व्यापारी था। प्रतिभावान होने के कारण सुल्तान इस्लाम शाह की नजरों में चढ़ गया। धीरे-धीरे तरक्की करते हुए उसे अफगान सेना में एक पद मिल गया। इस्लाम शाह के वारिस सुल्तान आदिल शाह को हेमू ने अपने गुणों से इतना प्रभावित कर लिया कि उसने उसे प्रधानमंत्री और प्रधान सेनापति बना दिया। हिंदू होते हुए भी वह सुल्तान का विश्वासपात्र और अफगान सेना का प्रिय बन गया। अफगान सरदार उसे आदर की दृष्टि से देखते थे। अपने सुल्तान के लिए उसने बाईस युद्ध लड़े थे और सभी में विजयी रहा था। उसकी प्रशस्ति में कहा गया-‘हेमू नृप भार्गव सरनामा। जिन जीते बाइस संग्रामा।’
तर्दी बेग को दिलासा दिया गया कि वह हिम्मत न हारे, मदद भेजी जा रही है। तर्दी बेग ने भी सब जिलों के शाही अफसरों को बुला लिया। बैरम खां ने अपने सबसे योग्य सेनापति पीर मुहम्मद शर्बानी तथा अन्य अफसरों को तर्दी बेग को सहायता देने के लिए दिल्ली भेजा। परंतु हेमू की भारी सेना के सामने ये लोग टिक न सके। केवल एक दिन (6 अक्टूबर, 1556) के युद्ध में हेमू ने दिल्ली छीन ली और अगले दिन ही उसने राजा के रूप में अपना अभिषेक कराया और ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की। दिल्ली के इतिहास में वह अंतिम हिंदू सम्राट था।
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