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जीवनी/आत्मकथा >> अकबर

अकबर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10540
आईएसबीएन :9781613016367

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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...

दुस्साहसी पादशाह

मार्च 1573 में सूरत दुर्ग जीतने के बाद एक रात अकबर अपने खास दरबारियों के साथ शराब का लुत्फ उठा रहा था। उस समय राजपूतों की बहादुरी के किस्से छिड़ गए। किसी ने कहा कि सुना जाता है कि कुछ लोग दुधारी तलवार लेकर खड़े हो जाते हैं और दो राजपूत वीर उन तलवारों से जा टकराते हैं। तलवार उनके सीने को चीरती हुई पीठ की ओर बाहर निकल जाती है।

अकबर से किसी और की शूरमाई सहन न हुई। वह उठा और उसने अपनी विशेष तलवार की मूंठ को दीवार में खोंस दिया और कहा, ‘‘जो राजपूत कर सकते हैं वह मैं भी कर सकता हूं।’’ यह सुनकर लोग सकते में आ गए। इसके पहले कि कुछ अप्रत्याशित घटित हो जाए मानसिंह झपटकर उठे और वह तलवार नीचे गिरा दी, जिससे अकबर सीना सटाए खड़ा था। इससे अकबर के अंगूठे और तर्जनी में घाव हो गया। वह तो देख रहा था कि तलवार दृढ़ता से जमीं है या नहीं। अकबर गुस्से में आग-बबूला हो उठा। उसने अपने प्राणरक्षक मानसिंह को धरती पर पटक दिया और उसकी पिटाई करने लगा। वहां मौजूद हर शख्स जानता था कि अगर यही हालात रहे तो थोड़ी ही देर में मानसिंह शहीद हो जाएगा। सवाल यह था कि व्यायाम दक्ष और पराक्रमी तथा चीते के समान बलशाली अकबर के पंजे से मानसिंह को कैसे बचाया जाए! तभी सैय्यद मुजफ्फर उठे और उन्होंने बादशाह की घायल उंगली पकड़कर मोड़ दी जिससे अकबर कराह उठा और उसकी पकड़ ढ़ीली पड़ गई। उसे चेत हो गया और मानसिंह को उसने छोड़ दिया।

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