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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...
अकबर के नवरत्न
दरबार को नवरत्नों से सुशोभित करने की परंपरा चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के शासन काल (375-412 ई.) से प्रारंभ हुई थी। उसके नवरत्न थे- कालिदास, धन्वन्तरि, क्षपणक, अमर सिंह, शंकु, बेताल भट्ट, घटकर्पर, वाराहमिहिर तथा वरुरुचि।
लगभग 12 सौ वर्ष बाद इस परंपरा को जीवित करने का श्रेय अकबर को जाता है। उसे कलाकारों और बुद्धिजीवियों से विशेष प्रेम था। उसके इसी प्रेम के कारण उसके दरबार के नौ अति गुणवान दरबारियों को ‘अकबर के नवरत्न’ के नाम से जाना जाता था। इसमें सम्मिलित थे-
अबुल फजल - अकबरनामा और आइने अकबरी का लेखक
फैजी - अबुल फजल का भाई, शहजादों का शिक्षक, फारसी कवि
तानसेन - दरबारी गायक और कवि
टोडरमल - वित्त मंत्री, भू-मापन प्रणाली के प्रणेता
मानसिंह - अकबर की सेना के प्रधान सेनापति
बीरबल - सलाहकार, परम बुद्धिमान, कवि, सेनापति
फकीर आजिआं-दिन - अकबर का सलाहकार
मुल्लाह दो पिआजा - अकबर का सलाहकार
अब्दुल रहीम खानखाना - बैरम खां का पुत्र, हिंदी कवि, सेनापति
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