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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...
ईरानी पोशाकें छा गईं
शक और कुषाणों ने यहां ईरानी पद्धति की पोशाकें शुरू करनी चाही थीं, परंतु विफल रहे। लेकिन मुगल दरबार ने एक ऐसा नया नमूना पेश किया जिससे तुर्क, पठान और मुगलों के जुराब और मोजा; जोरा और जामा; कुर्ता और कमीज; ऐचा, चोगा और मिर्जई खूब प्रचलित हुए। मुगल पोशाकें पहने मानसिंह और महावत खां में फर्क करना कठिन हो गया। मजे़ की बात यह कि मुगल सल्तनत के कट्टर दुश्मन राणा प्रताप और शिवाजी मुगल पोशाकें पहनते थे। मुगल पोशाकें दिल्ली और लखनऊ के दरबारों में तो प्रचलित ही थीं बंगाल के पंडितों द्वारा यह धारण की जाने लगीं। मुगलों ने जो कुछ शुरू किया अवध के नवाबों ने उसे सर्वांग सुंदर बनाया। बाद में भारतीय सरकार ने अचकन और पाजामा को राष्ट्रीय पोशाक मान लिया।
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