जीवनी/आत्मकथा >> अकबर अकबरसुधीर निगम
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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...
कोई गो-हत्या न करे
कहते हैं नरहरि नामक एक हिंदी कवि ने गौओं की ओर से यह छप्पय अकबर को सुनाया था-
अरिहुं दंत तृन धरे ताहि मारत न सबल कोइ।
हम सन्तत तृन चरहिं बचन उच्चरहिं दीन होइ।
अमृत छीर नित स्रवहिं बच्छ महि थम्भन जावहिं।
हिन्दुहिं मधुर न देहिं, कटुक तुरुकहिं न पिआवहिं।
कह कवि ‘नरहरि’ अकबर सुनो, विनवत गउ जोरे करन।
अपराध कौन मोहि मारियत, मुयेहु चाम सेवहिं चरन।
हम सन्तत तृन चरहिं बचन उच्चरहिं दीन होइ।
अमृत छीर नित स्रवहिं बच्छ महि थम्भन जावहिं।
हिन्दुहिं मधुर न देहिं, कटुक तुरुकहिं न पिआवहिं।
कह कवि ‘नरहरि’ अकबर सुनो, विनवत गउ जोरे करन।
अपराध कौन मोहि मारियत, मुयेहु चाम सेवहिं चरन।
इसे सुनकर अकबर के भावुक हृदय पर अनुकूल प्रभाव पड़ा। उसने कई चरणों में गो-हत्या का निषेध कर दिया। स्वयं मांस से परहेज किया। प्याज, लहसुन तक खाना छोड़ दिया। उसे अपने पिता हुमाऊँ की इस उक्ति से प्रेरणा मिली कि जो व्यक्ति ईश्वर का भक्त है उसे गो-मांस हरगिज नहीं खाना चाहिए।
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