जीवनी/आत्मकथा >> अकबर अकबरसुधीर निगम
|
0 |
धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...
बिछड़े सभी बारी-बारी
वर्ष 1589 अकबर के लिए बुरा गुजरा। इसी वर्ष तानसेन, टोडरमल, भगवानदास भगवान को प्यारे हो गए। उसके दो पुत्र सुल्तान मुराद 1599 ई. में और दानियाल 1605 ई. में अत्यधिक मदिरापान के कारण चल बसे। 11 मार्च 1562 को सलीम ने अबुल फजल की हत्या करवा दी। सूचना मिलने पर अकबर कई दिनों तक रोता रहा, छाती पीटता रहा। उसे सांत्वना देने के लिए बीरबल भी न थे। बादशाह का स्वास्थ्य गिरने लगा। सलीम की उच्छृंखलता और हुक्म अदूली बढ़ती जा रही थी। अकबर एक बार उसे माफ कर चुका था, अपनी पगड़ी उसके सिर पर रख चुका था पर उसका रवैया नहीं बदला। अकबर पेट की पीड़ा का शिकार हो गया जो संग्रहणी बन गई। रोग असाध्य सिद्ध हुआ और तेईस दिन की बीमारी के बाद 16 अक्टूबर 1605 ई. को अकबर ने सदैव के लिए आंखे मूंद ली और मुगलिया यशःसूर्य का अवसान हो गया।
उसकी मृत्यु के समय इस्लामी धर्मशास्त्री अब्दुल हक (जो अकबर के इस्लामी कट्टरपंथ से भटकाव के विरोधी रहे थे) ने संतोष व्यक्त किया था कि सब कुछ होते हुए भी अकबर एक अच्छा मुसलमान था। यदि अकबर को उस समय दो सांसे मिल जाती तो वह यह अवश्य जोड़ता, ‘‘उसकी धार्मिक आस्थाएं उसके अपने तर्कों और चयन का परिणाम थीं किसी ‘अंधश्रद्धा’ या ‘परंपरा की दलदल’ में फिसल जाने का नतीजा नहीं थीं।’’
अकबर के समकालीन कवि बनारसी दास ने अपने काव्य ग्रंथ अर्थ कथानक में लिखा है कि अकबर की मृत्यु का दुःसंवाद सुनकर सारी जनता हाहाकार कर उठी। स्वयं बनारसी दास यह दुःसंवाद सुनकर बेहोश होकर गिर गए थे। ऐसे ही गांधी जी की मृत्यु का समाचार सुनकर कई लोग अचानक मर गए थे।
जब भी अमृत की धारा फूटती है जहर अपना सिर ऊपर उठाने लगता है। अकबर ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच भेद कम से कम करना चाहा था। इसके विपरीत शेख अहमद सरहिंदी ने आंदोलन चलाया था कि इस्लाम की खैरियत इसी में है कि वह हिंदुत्व के स्पर्श से दूर रहे। वर्तमान युग में अकबरी-नीति की परिणति महात्मा गांधी में हुई और शेख सरहिंदी के दर्शन का प्रतिनिधित्व जिन्ना साहब ने किया। अमृत और हलाहल के संघर्ष में जीत अब तक हलाहल की ही हुई है।
0
|