जीवनी/आत्मकथा >> अकबर अकबरसुधीर निगम
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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...
ग्रंथ लेखन में अबुल फजल ने मूल स्रोतों के महत्व पर अधिक ध्यान दिया है। पूरा राजकीय अभिलेखागार उसके लिए उपलब्ध था। प्रत्येक तथ्य की वैधता व सत्यता सुनिश्चित करने के लिए वह एक स्रोत पर निर्भर न रहकर संपूर्ण सामग्री पर विचार करता था। रपटों, स्मरण-पत्रों, अफसरों द्वारा तैयार कार्यवाही-विवरणों, शाही फरमानों तथा दूसरे इंदराजों को वह ध्यानपूर्वक देखता था। अकबरी शासन के उन्नीसवें वर्ष बाद वह वाकियानवीसी द्वारा रोजाना दर्ज कार्रवाइयों का भारी सहारा लेता था। लेखक सैनिक अभियानों, प्रशासनिक कदमों तथा दूसरी घटनाओं की जानकारियां, लिखित वर्णन तथा रपटें प्राप्त करता था। प्रमुख अफसरों, कुलीनों, जानकार अभिजनों तथा शाही परिवार के बुजुर्गों से भी पूछताछ करता था। विरोधी बयानों से संतुष्ट न होकर उन्हें बयानकर्ताओं से लिखित रूप में मांगता था, फिर उन्हें बुद्धि की कसौटी पर कसता था। इस क्रम में उसने गंभीरता, संयम तथा अखंड व्यक्तित्व के लिए प्रसिद्ध बीस लोगों से लिखित वर्णन प्राप्त किए थे। ऐसे बयान परस्पर अंतर्विरोधी होने पर अकबर को सुनाए जाते थे। वह किसी विशेष वर्णन का सत्यापन करता और उसमें अपेक्षित सुधार का आदेश देता था। इसी प्रकार जो वर्णन अबुल फजल के व्यक्तिगत ज्ञान और अनुभव से टकराते थे वे भी बादशाह को सुनाए जाते थे। ऐतिहासिक छानबीन की प्रक्रिया से सत्य को सुनिश्चित करके ही दर्ज किया जाता था।
अबुल फजल को अकबर में एक सम्राट, दार्शनिक और वीर नायक के गुण एक साथ दिखाई दिए थे अतः उसने अकबर की सरकारी नीतियों और सिद्धांतों से अपने को पूरी तरह एकाकार कर लिया था। विषय वस्तु की विशालता, उस दौर के लोगों को आंदोलित करने वाले महान मुद्दे तथा अकबर का असाधारण व्यक्तित्व ने लेखक को ऐसा विषय दिया जो महाकाव्य लिखने के योग्य था। भाषा पर असाधारण अधिकार रखने वाले अबुल फजल ने एक ही साहित्यिक रचना में इतिहास और महाकाव्य दोनों का संयोजन करने का प्रयास किया। वे अपने प्रयास में सफल रहे हैं इसमें शायद ही किसी को संदेह हो।
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